क्रांतिकारी जतिंद्र नाथ मुखर्जी (बाघा जतिन): भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अद्वितीय योद्धा( 7 दिसम्बर 1879 - 10 सितम्बर 1915)

क्रांतिकारी जतिंद्र नाथ मुखर्जी (बाघा जतिन): भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अद्वितीय योद्धा( 7 दिसम्बर 1879 - 10 सितम्बर 1915)


भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में कई ऐसे अद्वितीय क्रांतिकारी हुए जिन्होंने अपने बलिदान, साहस और संगठन-शक्ति से ब्रिटिश साम्राज्य को हिलाकर रख दिया। उन्हीं महान सेनानियों में अग्रगण्य नाम है जतिंद्र नाथ मुखर्जी, जिन्हें इतिहास में अधिक प्रसिद्धि "बाघा जतिन" के नाम से मिली। उन्होंने न केवल युवाओं को संगठित कर क्रांतिकारी आंदोलन को मजबूत किया, बल्कि ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष को वैज्ञानिक रणनीति और अनुशासन के साथ संचालित किया।


प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि


जतिंद्र नाथ मुखर्जी का जन्म 7 दिसम्बर 1879 को बंगाल के कुश्तिया (अब बांग्लादेश) में हुआ। पिता की अकाल मृत्यु के बाद उनका पालन-पोषण उनकी माता शारदा देवी ने किया, जिनसे उन्हें देशभक्ति, नैतिकता और आदर्श जीवन की प्रेरणा मिली।
जतिन बचपन से ही शारीरिक रूप से मजबूत, प्रतिभाशाली, साहसी और नेतृत्व क्षमता से युक्त थे।
उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गांव में प्राप्त करने के बाद कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में नर्सिंग की पढ़ाई की। उसी समय वे समाजसेवा और युवाओं में जागृति लाने के कार्यों में संलग्न हुए।


 "बाघा जतिन" नाम की उत्पत्ति


1906 में एक दिन जंगल में जतिन पर भयंकर बंगाल टाइगर ने हमला कर दिया।
जतिन ने नंगे हाथों और छोटे चाकू से बाघ से संघर्ष किया और उसे मार गिराया।
इस अद्भुत साहसिक कृत्य के बाद लोग उन्हें सम्मानपूर्वक "बाघा जतिन" कहने लगे।

यह घटना केवल शारीरिक पराक्रम का प्रतीक नहीं थी, बल्कि उनके अथक संघर्ष, वीरता और अदम्य आत्मबल का दर्पण भी थी।

 

क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत


1905 में बंगाल विभाजन ने युवाओं में राष्ट्रवाद की प्रबल लहर जगा दी।
जतिन इस आंदोलन से जुड़कर राष्ट्रवादी संगठन "अनुशीलन समिति" के प्रमुख सदस्य बने।

उनके नेतृत्व में संगठन ने—

युवाओं का प्रशिक्षण

गुप्त नेटवर्क का निर्माण

हथियारों का संग्रह

विदेशी धन और समर्थन की व्यवस्था

– जैसे कार्यों को व्यवस्थित रूप दिया।

जतिन का मानना था कि स्वतंत्रता भीख में नहीं मिलती, बल्कि संगठित हथियारबंद संघर्ष से छिनी जाती है।


जर्मन योजना और महान षड्यंत्र


प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जतिन ने ब्रिटिश शासन को कमजोर करने के लिए जर्मनी की सहायता लेने की योजना बनाई।
इसे इतिहास में "इंडो-जर्मन कांस्पिरेसी" के नाम से जाना जाता है।

योजना के मुख्य उद्देश्य—

भारत में हथियारों की बड़ी मात्रा में आपूर्ति

सेना और पुलिस में विद्रोह भड़काना

ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति

जतिन और उनके साथियों ने—

रॉडडा हथियार कांड

कलकत्ता डकैती

ट्रांस-इंडिया नेटवर्क जैसे कई सफल अभियान चलाए।

ब्रिटिश पुलिस ने जतिन को भारत का सबसे खतरनाक क्रांतिकारी घोषित कर दिया।

 

बालासोर का युद्ध: शौर्य की अमर गाथा


सितंबर 1915 में जतिन और उनके साथियों का पता चलते ही ब्रिटिश सेना ने ओड़ीशा के बालासोर में उन्हें घेर लिया।
संख्या और शस्त्रबल दोनों में अत्यधिक कमजोर होने के बावजूद जतिन और उनके साथियों ने घंटों तक भीषण युद्ध किया।

जतिन की प्रसिद्ध घोषणा थी:
"हम मरेंगे, पर स्वतंत्रता की ज्योति बुझने नहीं देंगे।"

गंभीर रूप से घायल जतिन को गिरफ्तार कर लिया गया।
उन्होंने 10 सितम्बर 1915 को वीरगति पाई।

 

व्यक्तित्व और विचारधारा


जतिन केवल क्रांतिकारी ही नहीं, बल्कि—

अनुशासित सैनिक

प्रेरणादायी नेता

उत्कृष्ट रणनीतिज्ञ

समाजसेवी

—सब कुछ थे।

उनका विचार था— "देशभक्ति केवल भावना नहीं, एक अनुशासित कर्म है।"

वे नैतिक जीवन, शारीरिक क्षमता, संगठन-शक्ति और बलिदान को राष्ट्रसेवा का मूल मानते थे।


 योगदान और प्रभाव


जतिंत्रनाथ मुखर्जी भारत के उन विरले क्रांतिकारियों में हैं जिन्होंने—

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्रांति का स्वरूप विकसित किया।

भूमिगत नेटवर्क को मजबूत किया।

हथियारबंद विद्रोह को वैज्ञानिक संगठन दिया।

सैकड़ों युवाओं को राष्ट्र के लिए प्रेरित किया।

उनके सहयोगी रश्मित दत्ता, मनोरा सेन, प्रेमकृष्ण बेनर्जी, नरेन पांडे जैसे कई वीर उनके आंदोलन से जुड़े।


बाघा जतिन की विरासत


महात्मा गांधी ने बाघा जतिन को "भारत का महान सपूत" कहा।
सुभाष चंद्र बोस ने कहा— "अगर बाघा जतिन जीवित रहते, तो भारत बहुत पहले आज़ाद हो जाता।"

बाघा जतिन भारतीय युवाओं के लिए—

बहादुरी

आत्मबल

संगठन

अनुशासन

राष्ट्र-निष्ठा

के आदर्श बने रहे।

आज भी बंगाल, ओड़िशा और पूरे भारत में उनकी स्मृति सम्मानपूर्वक संरक्षित है।


निष्कर्ष


जतिंद्र नाथ मुखर्जी का जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का स्वर्णिम अध्याय है।
उनकी वीरता, बुद्धिमत्ता और नेतृत्व ने ब्रिटिश शासन को परिचालित कर दिया।
बालासोर का युद्ध उनके अदम्य साहस का प्रमाण है।

बाघा जतिन उन शौर्यवान महापुरुषों में से एक थे जिन्होंने साबित किया कि— "संगठित राष्ट्रवाद साम्राज्य की सबसे बड़ी चुनौती है।"

उनका बलिदान युवाओं को आज भी प्रेरित करता है कि— "सच्चे राष्ट्रप्रेमी कर्म से इतिहास बनाते हैं, शब्दों से नहीं।"


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