कस्तूरबा गांधी: एक निस्वार्थ योद्धा
कस्तूरबा गांधी, जिन्हें प्रेमपूर्वक 'बा' कहा जाता था, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण स्तंभ थीं। वे महात्मा गांधी की पत्नी होने के साथ-साथ उनके विचारों और आदर्शों की सहयात्री भी रहीं। उनका जीवन त्याग, समर्पण, और संघर्ष का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है।
प्रारंभिक जीवन
कस्तूरबा गांधी का जन्म 11 अप्रैल 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उनके पिता, गोकुलदास मकनजी, एक साधारण व्यापारी थे। उस समय समाज में लड़कियों की शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाती थी, जिसके कारण कस्तूरबा औपचारिक रूप से शिक्षित नहीं हो सकीं। 13 वर्ष की अल्पायु में उनका विवाह मोहनदास करमचंद गांधी से हुआ, जो आगे चलकर ‘महात्मा गांधी’ के रूप में प्रसिद्ध हुए।
संघर्ष और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
कस्तूरबा का जीवन गांधी जी के संघर्षों के समानांतर चला। जब गांधी जी इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका गए, तब भी कस्तूरबा ने उनके सिद्धांतों का पालन किया। दक्षिण अफ्रीका में 1913 में जब नस्लीय भेदभाव के खिलाफ सत्याग्रह हुआ, तो उन्होंने पहली बार जेल यात्रा की। उन्होंने महिलाओं को संगठित किया और समाज सुधार के लिए प्रेरित किया। जेल में अत्यंत कष्ट सहते हुए भी वे अपने सिद्धांतों से नहीं डिगीं।
भारत लौटने के बाद, उन्होंने चंपारन सत्याग्रह, खेड़ा आंदोलन, असहयोग आंदोलन, और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। वे महिलाओं के बीच जागरूकता फैलाने और समाज सुधार की दिशा में कार्यरत रहीं।
सादगी और आध्यात्मिकता
बा का जीवन पूर्णतः सादगी और धर्मपरायणता से परिपूर्ण था। उन्होंने हर स्थिति में गांधी जी के विचारों का समर्थन किया और स्वयं भी आत्मनिर्भरता का संदेश दिया। वे कठिन परिस्थितियों में भी संयम और धैर्य का परिचय देती थीं। उनका मानना था कि सत्य और अहिंसा ही व्यक्ति के वास्तविक हथियार हैं।
अंतिम समय और विरासत
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कस्तूरबा गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें पुणे के आगा खाँ महल में कैद रखा गया। लगातार कठिनाइयों और स्वास्थ्य समस्याओं के चलते 22 फरवरी 1944 को उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु के समय गांधी जी ने कहा था, “बा, अब तुम स्वतंत्र हो गई हो।”
निष्कर्ष
कस्तूरबा गांधी न केवल महात्मा गांधी की संगिनी थीं, बल्कि वे भारतीय महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत भी थीं। उनका संघर्ष, समर्पण और दृढ़ संकल्प हमें यह सिखाता है कि किसी भी परिस्थिति में आत्मबल और नैतिकता को बनाए रखना आवश्यक है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान अविस्मरणीय है और सदैव प्रेरणा देता रहेगा।
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