स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती: एक राष्ट्रभक्त संन्यासी
स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती (मुंशीराम विज) भारत के महान शिक्षाविद, स्वतंत्रता सेनानी एवं आर्य समाज के निष्ठावान संन्यासी थे। उनका जन्म 22 फरवरी 1856 को पंजाब के जालंधर जिले के तलवान गांव में हुआ था। वे स्वामी दयानन्द सरस्वती के विचारों से अत्यधिक प्रभावित थे और उन्होंने अपना जीवन वैदिक धर्म, शिक्षा एवं राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित कर दिया।
शिक्षा एवं प्रारंभिक जीवन
स्वामी श्रद्धानन्द के पिता नानकचंद विज ब्रिटिश शासन के अधीन पुलिस अधिकारी थे, जिसके कारण उनका स्थानांतरण कई जगहों पर हुआ और उनकी प्रारंभिक शिक्षा व्यवस्थित रूप से नहीं हो पाई। युवावस्था तक वे नास्तिक प्रवृत्ति के थे, किंतु स्वामी दयानन्द सरस्वती के प्रवचनों से प्रभावित होकर वे वैदिक धर्म के प्रति आस्थावान हो गए।
आर्य समाज एवं समाज सुधार
स्वामी श्रद्धानन्द ने आर्य समाज के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे जालंधर जिले के आर्य समाज के अध्यक्ष बने और समाज सुधार के कार्यों में जुट गए। उन्होंने नारी कल्याण, दलितोत्थान, स्वदेशी प्रचार और वेदोत्थान जैसे अनेक महत्वपूर्ण सामाजिक सुधारों में योगदान दिया। उन्होंने जातिवाद और छुआछूत के विरुद्ध भी संघर्ष किया।
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना
स्वामी श्रद्धानन्द ने 1901 में हरिद्वार के कांगड़ी गांव में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना की। इस संस्थान का उद्देश्य भारतीय मूल्यों एवं वैदिक शिक्षा पद्धति के अनुसार छात्रों को शिक्षित करना था। गांधीजी जब अफ्रीका से भारत लौटे, तब वे गुरुकुल गए और उन्होंने स्वामी श्रद्धानन्द को 'महात्मा' की उपाधि दी।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
स्वामी श्रद्धानन्द ने 1919 से 1922 तक कांग्रेस में सक्रिय भूमिका निभाई। जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद अमृतसर कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने स्वागत समिति के अध्यक्ष के रूप में हिंदी में भाषण दिया, जिससे हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का मार्ग प्रशस्त हुआ। 1922 में 'गुरु के बाग सत्याग्रह' के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
शुद्धि आंदोलन
स्वामी श्रद्धानन्द ने शुद्धि आंदोलन चलाया, जिसका उद्देश्य हिंदू धर्म से धर्मांतरित लोगों की घर वापसी कराना था। उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मलकान राजपूतों को पुनः वैदिक धर्म में दीक्षित किया। इस आंदोलन से कट्टरपंथी शक्तियाँ असंतुष्ट हो गईं और उन्हें कई धमकियाँ भी मिलीं।
हत्या एवं राष्ट्र की क्षति
23 दिसंबर 1926 को दिल्ली में उनके निवास स्थान पर अब्दुल रशीद नामक व्यक्ति ने छलपूर्वक उनके पास जाकर गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। यह घटना भारतीय समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति थी।
साहित्य एवं पत्रकारिता
स्वामी श्रद्धानन्द ने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी योगदान दिया। उन्होंने 'सद्धर्म प्रचारक', 'अर्जुन' (हिंदी) और 'तेज' (उर्दू) नामक पत्रिकाएँ निकालीं। उन्होंने स्वामी दयानन्द के विचारों का प्रचार किया और सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा दिया। उनकी रचनाएँ आज भी प्रेरणादायक हैं।
निष्कर्ष
स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती एक महान समाज सुधारक, शिक्षाविद और राष्ट्रभक्त थे। उन्होंने अपना जीवन वैदिक धर्म, शिक्षा और सामाजिक सुधार के लिए समर्पित किया। उनका योगदान भारतीय समाज के उत्थान में अतुलनीय है। उनकी शिक्षाएँ और विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं और एक सशक्त भारत की दिशा में मार्गदर्शन करते है।
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