जॉर्ज फर्नांडीस: एक क्रांतिकारी समाजवादी नेता(3 जून 1930-29 जनवरी 2019)


जॉर्ज फर्नांडीस: एक क्रांतिकारी समाजवादी नेता(3 जून 1930-29 जनवरी 2019) 




जॉर्ज फर्नांडीस भारतीय राजनीति के उन दिग्गज नेताओं में से एक थे, जिन्होंने समाजवाद, मजदूर हितों और राष्ट्रवाद के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया। वे न केवल एक प्रखर वक्ता थे, बल्कि एक जुझारू नेता भी थे, जिन्होंने सत्ताधारी तंत्र के खिलाफ आवाज उठाई और संघर्ष किया। उनकी पहचान एक विद्रोही नेता के रूप में रही, जिन्होंने आपातकाल के दौरान सत्ता के दमनकारी रवैये का कड़ा विरोध किया।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

जॉर्ज फर्नांडीस का जन्म 3 जून 1930 को कर्नाटक के मैंगलोर में हुआ था। वे एक ईसाई परिवार से थे, लेकिन उनका झुकाव प्रारंभ से ही समाजवादी विचारधारा की ओर था। उनका बचपन संघर्षपूर्ण रहा, और बाद में वे नौकरी की तलाश में मुंबई चले गए।

मुंबई में वे ट्रेड यूनियन आंदोलनों में सक्रिय हो गए और मजदूरों के हक के लिए संघर्ष करने लगे। उन्होंने टैक्सी यूनियन, रेलवे कर्मचारियों और उद्योगों में श्रमिकों के हक की लड़ाई लड़ी, जिससे वे मजदूर वर्ग के नायक बन गए।

राजनीति में प्रवेश और संघर्ष

1967 में जॉर्ज फर्नांडीस ने मुंबई से लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता एस.के. पाटिल को हराकर पहली बार संसद में प्रवेश किया। इस जीत ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एक मज़बूत समाजवादी नेता के रूप में स्थापित कर दिया।

1974 में उन्होंने देशभर में रेलवे कर्मचारियों की हड़ताल का नेतृत्व किया, जो आज़ाद भारत के सबसे बड़े श्रमिक आंदोलनों में से एक था। सरकार ने इस हड़ताल को कुचलने के लिए कड़े कदम उठाए, लेकिन जॉर्ज फर्नांडीस मजदूरों के पक्ष में डटे रहे।

आपातकाल और जॉर्ज फर्नांडीस

1975 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू किया, तब जॉर्ज फर्नांडीस को सत्ता के खिलाफ विद्रोह का प्रतीक माना गया। वे सरकार द्वारा वांछित थे और पुलिस उन्हें खोज रही थी। उन्होंने कुछ समय तक अंडरग्राउंड रहकर संघर्ष किया, लेकिन बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। मशहूर "बरौदा डायनामाइट केस" में उन्हें मुख्य अभियुक्त बनाया गया। जेल में रहते हुए ही उन्होंने 1977 का लोकसभा चुनाव लड़ा और शानदार जीत दर्ज की।

केंद्रीय मंत्री के रूप में भूमिका

1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद जॉर्ज फर्नांडीस को उद्योग मंत्री बनाया गया। उनके कार्यकाल में कोका-कोला और आईबीएम जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत छोड़ना पड़ा क्योंकि वे भारतीय कानूनों का पालन नहीं कर रही थीं।

बाद में वे रक्षा मंत्री भी बने और 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान उनकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही। उन्होंने भारतीय सेना को मजबूत करने के लिए कई सुधार किए। रक्षा मंत्रालय के कार्यकाल के दौरान वे कुछ विवादों में भी रहे, लेकिन उनकी छवि एक निडर और ईमानदार नेता की बनी रही।

अंतिम समय और विरासत

अपने राजनीतिक जीवन के आखिरी वर्षों में जॉर्ज फर्नांडीस का स्वास्थ्य लगातार गिरता गया। वे अल्ज़ाइमर और पार्किंसन जैसी बीमारियों से ग्रस्त हो गए। 29 जनवरी 2019 को उनका निधन हो गया, जिससे भारत ने एक क्रांतिकारी नेता को खो दिया।

जॉर्ज फर्नांडीस की गिनती उन नेताओं में होती है, जिन्होंने जनता की आवाज़ बनकर राजनीति की। वे सत्ता के खिलाफ लड़ने वाले योद्धा थे, जिनका जीवन संघर्ष, बलिदान और ईमानदारी का प्रतीक रहा। उनका योगदान भारतीय राजनीति और समाज के लिए अविस्मरणीय रहेगा।

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