घनश्याम दास बिरला : राष्ट्रवादी उद्योगपति (10 अप्रैल 1894- 11 जून 1983)

घनश्याम दास बिरला : राष्ट्रवादी उद्योगपति (10 अप्रैल 1894- 11 जून 1983)


भूमिका
भारतीय औद्योगिक क्रांति के इतिहास में घनश्याम दास बिरला (जी.डी. बिरला) का नाम अत्यंत श्रद्धा और सम्मान के साथ लिया जाता है। वे ऐसे युगपुरुष थे जिन्होंने व्यवसाय को केवल धन अर्जन का माध्यम नहीं माना, बल्कि उसे समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण का एक प्रमुख उपकरण बनाया। उनका जीवन स्वतंत्रता संग्राम, औद्योगिक उन्नति, शिक्षा का प्रसार और सामाजिक उत्थान की प्रेरणादायक मिसाल है।

प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि

घनश्याम दास बिरला का जन्म 10 अप्रैल 1894 को राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र स्थित पिलानी गाँव में एक प्रतिष्ठित मारवाड़ी वैश्य परिवार में हुआ था। उनके पिता बलदेव दास बिरला एक परंपरागत व्यापारी थे, जिन्होंने बाद में मुंबई और कोलकाता में व्यापारिक गतिविधियों की शुरुआत की।

बिरला परिवार में धार्मिकता, पारिवारिक मूल्य और परिश्रम की परंपरा थी, जिसने घनश्याम दास की सोच और व्यवहार को गहराई से प्रभावित किया।

शिक्षा और प्रारंभिक अनुभव

घनश्याम दास ने पारंपरिक शिक्षा के साथ ही व्यापारिक कार्यों में व्यावहारिक अनुभव प्राप्त किया। उन्हें बचपन से ही खाता-बही, लेन-देन, और बाज़ार की समझ सिखाई गई। यही कारण है कि उन्होंने कम उम्र में ही व्यापार के क्षेत्र में अपनी बुद्धिमत्ता और प्रबंधन कौशल का परिचय देना शुरू कर दिया।

व्यापारिक साम्राज्य की नींव

1911 में उन्होंने कोलकाता में एक जूट कंपनी की स्थापना की, जिसका नाम था "Birla Jute Manufacturing Company"। यह उस समय ब्रिटिश कंपनियों के प्रभुत्व वाले क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम था।

उनकी दृष्टि केवल लाभ कमाने तक सीमित नहीं थी, बल्कि वे भारतीयों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। उन्होंने धीरे-धीरे अपना कारोबार कई क्षेत्रों में फैलाया, जिनमें शामिल हैं:

कपड़ा उद्योग – टेक्सटाइल मिल्स की स्थापना कर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर उत्पन्न किए।

सीमेंट उद्योग – भारत में निर्माण क्षेत्र की नींव को मजबूती दी।

एल्यूमिनियम और धातु उद्योग – हिंडाल्को जैसी कंपनियों की स्थापना कर आधुनिक भारत के औद्योगिक ढांचे को बल दिया।

हिंदुस्तान मोटर्स – भारत की पहली कार कंपनी, जिसने देश को मोटर वाहन निर्माण की दिशा में अग्रसर किया।

राष्ट्रीय आंदोलन में सहयोग

घनश्याम दास बिरला भारत के उन दुर्लभ उद्योगपतियों में से थे जिन्होंने खुलकर स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन किया। वे महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी थे और उन्हें भरपूर आर्थिक तथा नैतिक समर्थन देते थे।

बिरला हाउस, जो दिल्ली में स्थित था, वह गांधीजी का निवास स्थान बन गया था। यहाँ कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए, और आज यह गांधी स्मृति के रूप में राष्ट्र की अमूल्य धरोहर है।

राजनीतिक एवं प्रशासनिक योगदान

  • वे भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के पहले निदेशक मंडल के सदस्य थे।
  • उन्होंने स्वतंत्र भारत की वित्तीय एवं औद्योगिक नीति को आकार देने में परोक्ष रूप से योगदान दिया।
  • वे 1930 के दशक में विधान परिषद के सदस्य भी रहे और भारतीय औद्योगिक नीति के निर्माण में अहम भूमिका निभाई।

शिक्षा और समाज सेवा में योगदान

घनश्याम दास बिरला का मानना था कि शिक्षा ही समाज का असली उद्धार कर सकती है। इसी सोच के साथ उन्होंने कई शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की:

  • बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (BITS), पिलानी – यह आज भारत के प्रमुख इंजीनियरिंग संस्थानों में से एक है।
  • उन्होंने बिरला मंदिरों की श्रृंखला शुरू की – कोलकाता, दिल्ली, हैदराबाद, जयपुर जैसे अनेक शहरों में भव्य मंदिर बनवाए।
  • बिरला एजुकेशन ट्रस्ट और कई स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना से उन्होंने समाज के गरीब और वंचित वर्गों की सेवा की।

निजी जीवन और विचारधारा

घनश्याम दास बिरला अत्यंत साधारण जीवन जीने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने जीवनभर संयम, अनुशासन और नैतिक मूल्यों का पालन किया। वे राष्ट्रवाद, धर्म, शिक्षा और स्वदेशी विचारधारा के प्रबल समर्थक थे। उनका जीवन भारतीय संस्कृति और आधुनिकता का अनूठा संगम था।

सम्मान और स्मृति

  • पद्म विभूषण (1957) – भारत सरकार ने उन्हें देश की सेवा हेतु सम्मानित किया।
  • "गांधीजी के विश्वस्त सहयोगी" के रूप में उनकी पहचान थी।
  • भारत में आज भी कई संस्थान, सड़कें, पुस्तकालय और सामाजिक केंद्र उनके नाम पर हैं।

निधन और विरासत

11 जून 1983 को उनका निधन हुआ। उन्होंने भारत को केवल उद्योग नहीं, बल्कि प्रेरणा दी – अपने विचारों, कार्यों और मूल्यों के माध्यम से।

उनकी विरासत आज भी बिरला समूह के रूप में जीवित है, जो भारत की सबसे बड़ी औद्योगिक घरानों में से एक है, और जिसका संचालन उनके उत्तराधिकारी – जैसे कुमार मंगलम बिरला – कर रहे हैं।

उपसंहार

घनश्याम दास बिरला केवल एक व्यवसायी नहीं थे, बल्कि वे एक दृष्टा, समाज सुधारक, शिक्षा-प्रेमी और राष्ट्रभक्त थे। उनका जीवन एक उदाहरण है कि कैसे उद्योग, समाज सेवा और राष्ट्रनिर्माण को एक साथ जोड़ा जा सकता है। आज जब हम आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं, तो हमें बिरला जैसे अग्रदूतों के योगदान को सम्मानपूर्वक स्मरण करना चाहिए।

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