लेखराम: आर्य समाज के प्रखर सुधारक और शहीद,,(अप्रैल 1858 – 6 मार्च 1897)

लेखराम: आर्य समाज के प्रखर सुधारक और शहीद

लेखराम (1858 – 6 मार्च 1897) भारत के एक प्रसिद्ध आर्य समाजी नेता, पत्रकार और हिंदू समाज सुधारक थे। वे स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों से अत्यधिक प्रभावित थे और अपने जीवन को हिंदू धर्म की रक्षा और प्रचार-प्रसार में समर्पित कर दिया। उन्होंने विशेष रूप से इस्लाम और ईसाई धर्म के मिशनरियों द्वारा हिंदू धर्म पर किए जा रहे हमलों का जवाब देने के लिए वैचारिक संघर्ष किया। उनकी निर्भीकता और लेखनी ने उन्हें हिंदू समाज के प्रमुख योद्धाओं में शामिल कर दिया, लेकिन इसी कारण वे कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए और अंततः धर्म की रक्षा करते हुए शहीद हो गए।


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जन्म और प्रारंभिक जीवन

लेखराम का जन्म 1858 में अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत (वर्तमान पाकिस्तान) के झेलम जिले में हुआ था। वे एक धार्मिक और कट्टर हिंदू परिवार में पले-बढ़े, जहां बाल्यकाल से ही उनकी रुचि धर्म और वेदों के अध्ययन में थी। वे बचपन से ही तार्किक और जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे, जिसके कारण वे विभिन्न धर्मों के सिद्धांतों का गहन अध्ययन करने लगे।

उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण करने के बाद कुछ समय के लिए ब्रिटिश भारतीय सेना में नौकरी की, लेकिन स्वामी दयानंद सरस्वती और आर्य समाज के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से समाज सुधार और धर्म प्रचार में लग गए।


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आर्य समाज और हिंदू धर्म की रक्षा

स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित आर्य समाज हिंदू समाज में सुधार लाने और वेदों के प्रचार-प्रसार का एक क्रांतिकारी आंदोलन था। लेखराम ने इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और आर्य समाज के प्रमुख प्रचारकों में शामिल हो गए। उन्होंने विशेष रूप से धर्म परिवर्तन कराने वालों के खिलाफ आवाज उठाई और इस्लाम व ईसाई धर्म के उन सिद्धांतों का तर्कपूर्ण खंडन किया, जो हिंदू धर्म के खिलाफ प्रचारित किए जाते थे।

उन्होंने हिंदी और संस्कृत में कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे, जिनमें इस्लाम और ईसाई धर्म की आलोचना की गई थी। उनके लेखों और पुस्तकों ने आर्य समाजियों को एक नई दिशा दी और हिंदू समाज को अपने धर्म के प्रति जागरूक किया।


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पत्रकारिता और साहित्य में योगदान

लेखराम केवल एक समाज सुधारक ही नहीं, बल्कि एक प्रखर पत्रकार और लेखक भी थे। उन्होंने आर्य समाज के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखे, जिनका उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करना और उनमें धर्म के प्रति जागरूकता लाना था। उन्होंने 'आर्य मित्र' और 'सुधारक' जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया।

उनके प्रमुख ग्रंथों में शामिल हैं:

"तक़दीर का तमाशा" – इसमें उन्होंने इस्लामी मान्यताओं की तर्कपूर्ण आलोचना की।

"खतरे की घंटी" – इसमें उन्होंने हिंदू समाज को धर्मांतरण के खतरों से आगाह किया।

"सत्यप्रकाश भाष्य" – इसमें उन्होंने स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों का विस्तार से विश्लेषण किया।


उनकी लेखनी इतनी प्रभावशाली थी कि उनके तर्कों से प्रभावित होकर कई लोगों ने हिंदू धर्म में वापसी की और धर्मांतरण को रोका गया।


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शहादत और मृत्यु (6 मार्च 1897)

लेखराम का पूरा जीवन हिंदू धर्म की रक्षा के लिए समर्पित था, और इसी कारण वे कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए। उन्होंने इस्लाम के सिद्धांतों की आलोचना की थी, जिससे मुस्लिम कट्टरपंथी उनके विरोधी हो गए थे।

1893 में, लेखराम को एक पत्र मिला, जिसमें एक व्यक्ति ने इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म अपनाने की इच्छा जताई। लेखराम ने उस व्यक्ति को मार्गदर्शन देने का वचन दिया, लेकिन यह एक षड्यंत्र था।

6 मार्च 1897 को, वही व्यक्ति लेखराम से मिलने उनके घर आया और धोखे से उन पर प्राणघातक हमला कर दिया। हमले में लेखराम बुरी तरह घायल हो गए। कुछ दिनों तक संघर्ष करने के बाद, अंततः उनका निधन हो गया।

उनकी शहादत हिंदू समाज के लिए एक बड़ी क्षति थी, लेकिन इससे आर्य समाजियों में और अधिक जागरूकता आई और हिंदू पुनर्जागरण आंदोलन को और बल मिला।


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लेखराम की विरासत

आज भी लेखराम को हिंदू धर्म के एक महान योद्धा और आर्य समाज के शहीद के रूप में याद किया जाता है। उनके कार्यों ने भारतीय समाज को जागरूक किया और हिंदू पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी लेखनी और विचारधारा आज भी आर्य समाज और हिंदू समाज सुधारकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

उनका जीवन हमें सिखाता है कि धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए साहस, निष्ठा और त्याग की आवश्यकता होती है। उनकी शहादत हिंदू समाज के लिए हमेशा प्रेरणादायक बनी रहेगी।


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