डी.ए.वी. स्थापना दिवस ( 1 जून 1886)

डी.ए.वी. स्थापना दिवस ( 1 जून 1886)


प्रस्तावना

भारत एक प्राचीन सांस्कृतिक विरासत वाला राष्ट्र है, जहां शिक्षा को जीवन का सर्वोच्च साधन माना गया है। ‘सा विद्या या विमुक्तये’ की भावना को लेकर भारतीय ज्ञान परंपरा ने विश्व को ज्ञान, विवेक और शांति का मार्ग दिखाया। लेकिन औपनिवेशिक काल में भारतीय शिक्षा प्रणाली को गहरी क्षति पहुँची। ऐसे समय में स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा प्रवर्तित आर्य समाज आंदोलन और उससे उपजे डी.ए.वी. आंदोलन ने भारतीय शिक्षा को उसकी आत्मा लौटाने का कार्य किया। इसी उद्देश्य से 1 जून 1886 को लाहौर में डी.ए.वी. संस्था की स्थापना हुई थी। यह दिन आज भी शिक्षा, सेवा और संस्कृति के संवाहक के रूप में "डी.ए.वी. स्थापना दिवस" के रूप में मनाया जाता है।

डी.ए.वी. आंदोलन की पृष्ठभूमि

19वीं शताब्दी के भारत में सामाजिक कुरीतियाँ, धार्मिक अंधविश्वास और औपनिवेशिक दमन व्यापक रूप से फैले हुए थे। स्वामी दयानंद सरस्वती ने इन बुराइयों के खिलाफ आवाज़ उठाई और वेदों के शुद्ध स्वरूप की ओर लौटने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि “वेद विश्व का आदि ज्ञान है, और उसमें सब प्रकार की समस्याओं का समाधान है।”

उनके अनुयायियों ने महसूस किया कि अगर भारत को सचमुच स्वतंत्र और स्वाभिमानी बनाना है तो उसकी जड़ों में शिक्षा को पुनः सींचना होगा। इसी उद्देश्य से आर्य समाज के शिक्षित वर्ग ने मिलकर डी.ए.वी. कॉलेज ट्रस्ट एंड मैनेजिंग कमिटी की स्थापना की और आधुनिक विज्ञान को वैदिक सिद्धांतों के साथ समन्वित करते हुए शिक्षा देने का संकल्प लिया।

डी.ए.वी. की स्थापना और महात्मा हंसराज का योगदान

डी.ए.वी. संस्था की नींव के प्रमुख शिल्पी महात्मा हंसराज थे, जिन्होंने 1 जून 1886 को लाहौर में प्रथम डी.ए.वी. विद्यालय की स्थापना की। वे पहले प्रधानाचार्य बने और पहले एक वर्ष तक बिना वेतन के सेवा देकर "त्याग और समर्पण" का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। यह वर्ष “निःशुल्क सेवा वर्ष” (Free Service Year) के रूप में भारतीय शिक्षा इतिहास में अमर हो गया।

महात्मा हंसराज का विश्वास था कि शिक्षा केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि मनुष्य के संपूर्ण विकास का माध्यम होनी चाहिए – जिसमें नैतिकता, देशभक्ति, सेवा और आत्मबोध भी हो।

डी.ए.वी. की शिक्षण पद्धति और विशेषताएं

डी.ए.वी. संस्थाओं की शिक्षा पद्धति की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

वैदिक और आधुनिक शिक्षा का समन्वय – छात्रों को वेद, संस्कृत, यज्ञ, योग, चरित्र निर्माण और भारतीय संस्कृति का ज्ञान देने के साथ-साथ विज्ञान, गणित, अंग्रेज़ी, कंप्यूटर जैसे आधुनिक विषयों में दक्ष बनाया जाता है।

नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा – डी.ए.वी. विद्यालयों में प्रार्थना सभाएं, हवन, नैतिक शिक्षाएं, समाज सेवा जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से बच्चों को जीवन मूल्यों से जोड़ने का प्रयास किया जाता है।

राष्ट्रीयता और समाजसेवा की भावना – डी.ए.वी. विद्यार्थियों को देशभक्ति, सामाजिक उत्तरदायित्व, पर्यावरण चेतना और मानवता के प्रति संवेदनशील बनाया जाता है।

महिलाओं की शिक्षा पर बल – प्रारंभ से ही डी.ए.वी. आंदोलन ने बालिकाओं की शिक्षा को समान प्राथमिकता दी। आज देशभर में हजारों बालिकाएं डी.ए.वी. संस्थानों में शिक्षा ग्रहण कर रही हैं।

डी.ए.वी. आंदोलन का विस्तार

1 जून 1886 को लाहौर में एक विद्यालय से प्रारंभ हुआ यह आंदोलन आज पूरे देश में शिक्षा का अग्रदूत बन चुका है:

900 से अधिक डी.ए.वी. स्कूल

50+ कॉलेज व प्रोफेशनल संस्थान

1 विश्वविद्यालय – डी.ए.वी. यूनिवर्सिटी, जालंधर

नेपाल, मॉरीशस, यू.के., फिजी आदि देशों में भी डी.ए.वी. संस्थाएं कार्यरत हैं।

ब्यूरोक्रेसी, शिक्षा, विज्ञान, खेल, सेना, और व्यवसाय जैसे हर क्षेत्र में डी.ए.वी. के छात्र शीर्ष पर पहुंचे हैं। यह संस्था “चरित्रवान नागरिक निर्माण” का जीवंत उदाहरण है।

स्थापना दिवस का आयोजन और महत्व

1 जून को प्रत्येक डी.ए.वी. संस्थान में स्थापना दिवस विशेष उत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह दिन छात्रों और शिक्षकों को उनके दायित्व की याद दिलाता है कि:

वे अपने चरित्र, आचरण और अध्ययन से संस्था की गरिमा को बढ़ाएं

वे समाज के प्रति उत्तरदायी नागरिक बनें

वे स्वामी दयानंद और महात्मा हंसराज के आदर्शों पर चलें

इस दिन आयोजित होने वाले प्रमुख कार्यक्रम:

वैदिक हवन और सामूहिक प्रार्थना

स्वामी दयानंद एवं संस्थापक महात्मा हंसराज पर भाषण, निबंध, कविता प्रतियोगिता

समाज सेवा गतिविधियाँ (जैसे – स्वच्छता अभियान, वृक्षारोपण, रक्तदान आदि)

सांस्कृतिक कार्यक्रम जिनमें भारतीय संस्कृति की झलक हो

उपसंहार

डी.ए.वी. स्थापना दिवस केवल एक संस्था की नींव की वर्षगांठ नहीं है, बल्कि यह उस भारतीय आत्मा का पुनर्जागरण है, जो वेदों में, संस्कृति में, त्याग में और सेवा में निहित है। इस संस्था ने यह प्रमाणित किया है कि यदि शिक्षा में नैतिकता और संस्कृति का समावेश हो, तो वह समाज और राष्ट्र दोनों को उन्नत बना सकती है।

आज जब हम वैश्वीकरण, तकनीक और भौतिकता की दौड़ में भाग रहे हैं, तब डी.ए.वी. जैसे संस्थान हमें अपनी जड़ों की ओर लौटने और एक संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।
स्वामी दयानंद सरस्वती और महात्मा हंसराज के सपनों को साकार करने वाली यह संस्था आने वाले युगों तक भारत का मार्गदर्शन करती रहे – यही स्थापना दिवस का संकल्प होना चाहिए।

"शिक्षा वह दीप है, जो केवल बुद्धि नहीं, आत्मा को भी प्रकाशित करता है – और डी.ए.वी. इस ज्योति का सतत वाहक है।"

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