के.ए. दामोदर मेनन ( 10 जून, 1906 - 1 नवंबर, 1980 )
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे, जिन्होंने एक राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक और मंत्री के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका जीवन और कार्य भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
दामोदर मेनन का जन्म 10 जून, 1906 को केरल के एर्नाकुलम जिले के करुमल्लूर में हुआ था। उनके पिता टी.आर. अच्युतन पिल्लई और माता कालप्पुरक्कल नंगु अम्मा थीं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा परवूर हाई स्कूल में पूरी की। स्कूली दिनों में ही उनके पिता का निधन हो गया। स्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने कानून की डिग्री (एलएलबी) प्राप्त की।
बर्मा में प्रारंभिक करियर और स्वतंत्रता संग्राम में प्रवेश:
शिक्षा पूरी करने के बाद, दामोदर मेनन ने कुछ समय के लिए देवस्वोम आयुक्त कार्यालय में काम किया। बेहतर अवसरों की तलाश में वे बर्मा (म्यांमार) चले गए, जहाँ उन्होंने अकाउंटेंट जनरल के कार्यालय में क्लर्क के रूप में काम किया। बाद में वे मंडले में केली हाई स्कूल में शिक्षक बन गए। एक साल बाद, उन्होंने रंगून विश्वविद्यालय से शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम (DT) पूरा किया और दक्षिणी बर्मा के पयापोन में एक सरकारी स्कूल में एक साल तक शिक्षक के रूप में कार्य किया।
लेकिन, केरल में चल रहे स्वतंत्रता संग्राम ने उन्हें वापस बुला लिया। उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और भारत लौट आए। वापसी के दौरान उन्होंने कोलकाता, बिहार, सूरत, मुंबई और भारत के अन्य महत्वपूर्ण केंद्रों में स्वतंत्रता संग्राम का अवलोकन किया, जिसने उनके विचारों और संकल्पों को और मजबूत किया।
पत्रकारिता और लेखन:
दामोदर मेनन एक उत्कृष्ट पत्रकार थे और उन्होंने पत्रकारिता को राजनीति के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में देखा। उन्होंने "समदर्शी" के संपादक के रूप में अपने पत्रकारिता करियर की शुरुआत की। बाद में, उन्होंने 14 वर्षों तक प्रतिष्ठित मलयालम दैनिक "मातृभूमि" का संपादन किया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, जब वे "मातृभूमि" के संपादक थे, उन्हें 1942 से 1944 तक जेल में रहना पड़ा। उन्होंने "स्वतंत्र", "कहालम" और "पॉवर शक्ति" जैसे अन्य पत्रों का भी संपादन किया। पत्रकारिता के समृद्ध अनुभव के साथ, उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें 'नर्मकथाकल', 'भावनासुनाम', 'बालारमन' और 'थोपिल निधि' शामिल हैं। 1979 में केरल प्रेस अकादमी के गठन के बाद वे इसके पहले अध्यक्ष भी रहे।
राजनीतिक जीवन और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:
दामोदर मेनन स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल हुए और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख नेता बन गए। उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी के लिए कई बार जेल जाना पड़ा, कुल मिलाकर लगभग पाँच साल।
* ऐक्य केरल आंदोलन: वे एकीकृत केरल के आंदोलन में एक सक्रिय कार्यकर्ता थे और 1945 से 1957 तक ऐक्य केरल समिति के सचिव के रूप में कार्य किया।
* संसदीय भूमिका:
* 1950 में वे प्रांतीय संसद के लिए चुने गए।
* 1952 में, वे किसान मजदूर प्रजा पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में कोझिकोड (तत्कालीन मद्रास राज्य) से भारतीय संसद (लोकसभा) के लिए चुने गए।
* 1957 में वे केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी (KPCC) के अध्यक्ष बने।
* 1960 में वे पारूर से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में केरल विधान सभा के लिए चुने गए।
* मंत्रिपरिषद में भूमिका:
* पट्टम थानु पिल्लई के नेतृत्व वाली सरकार में वे उद्योग मंत्री रहे।
* बाद में, आर. शंकर के नेतृत्व वाली कैबिनेट में भी उन्होंने उद्योग और स्थानीय प्रशासन मंत्री के रूप में कार्य किया।
निधन:
के.ए. दामोदर मेनन का निधन 1 नवंबर, 1980 को हुआ।
दामोदर मेनन ने अपने जीवन को देश की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई, बल्कि एक पत्रकार, लेखक और राजनीतिज्ञ के रूप में भी समाज और देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारतीय राजनीति और आजादी में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।
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