अन्ना हज़ारे (जन्म: 15 जून 1937)
(भारत के एक सच्चे गांधीवादी और जनआंदोलन के पुरोधा)
परिचय
अन्ना हज़ारे (पूरा नाम: किसन बाबूराव हज़ारे) भारत के एक प्रसिद्ध समाजसेवी, गांधीवादी विचारक और भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के अग्रदूत हैं। उन्होंने अपने जीवन को ग्राम विकास, नैतिक मूल्यों और सामाजिक न्याय की सेवा में समर्पित कर दिया है। विशेषकर वर्ष 2011 में उनके नेतृत्व में चलाए गए जनलोकपाल आंदोलन ने पूरे देश को झकझोर दिया और उन्हें एक जननायक के रूप में स्थापित किया।
प्रारंभिक जीवन
- जन्म: 15 जून 1937
- स्थान: भिंगार, अहमदनगर ज़िला, महाराष्ट्र
- परिवार: एक गरीब मराठी परिवार, पिता बाबूराव हज़ारे और माता लक्ष्मीबाई
अन्ना का मूल नाम किसन बाबूराव हज़ारे था। आर्थिक अभाव के कारण उन्होंने केवल सातवीं कक्षा तक ही शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद जीवनयापन हेतु उन्होंने रेलवे स्टेशन पर फूल बेचने का कार्य भी किया।
सैन्य जीवन
अन्ना 1960 में भारतीय सेना में भर्ती हुए। वे 22 वर्षों तक सेना में कार्यरत रहे और पाकिस्तान के साथ हुए 1965 के युद्ध में भी भाग लिया। यहीं से उनके भीतर देशसेवा और आत्मबलिदान की भावना प्रबल हुई।
जीवन में परिवर्तन की प्रेरणा
एक बार ड्यूटी के दौरान एक आत्मविज्ञान संबंधी पुस्तक पढ़ने के बाद उन्होंने तय किया कि वे अब शेष जीवन देश और समाज की सेवा में लगाएँगे। इस संकल्प के साथ उन्होंने सेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली और अपने गांव रालेगण सिद्धि लौट आए।
रालेगण सिद्धि – आदर्श गांव की स्थापना
अन्ना हज़ारे ने महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के एक पिछड़े गांव रालेगण सिद्धि को आदर्श ग्राम में बदलने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।
उनके प्रयासों से गांव में निम्नलिखित परिवर्तन आए:
- जल संरक्षण योजनाएँ (बाँध, नाला रोक तकनीक)
- ग्रामसभा की लोकतांत्रिक स्थापना
- शराबबंदी, वृक्षारोपण, स्वच्छता
- शिक्षा का प्रचार
- समरसता और सामूहिक निर्णय प्रणाली
इस कार्य के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिले और रालेगण सिद्धि एक मॉडल गाँव बन गया।
भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष
जनलोकपाल आंदोलन (2011)
अन्ना हज़ारे का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक आंदोलन जनलोकपाल बिल के समर्थन में था। इस आंदोलन के मुख्य उद्देश्य थे:
- केंद्र व राज्य सरकारों में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करना
- एक स्वतंत्र लोकपाल की नियुक्ति जो प्रधानमंत्री, मंत्रियों और नौकरशाहों की जांच कर सके
- जनता को सशक्त बनाना
इस आंदोलन की विशेषताएँ:
- स्थल: दिल्ली का रामलीला मैदान
- तिथि: अप्रैल 2011 से अगस्त 2011 तक
- प्रभाव: लाखों लोगों की भागीदारी, मीडिया का भारी समर्थन, सरकार पर दबाव
इस आंदोलन ने अन्ना हज़ारे को “दूसरे गांधी” के रूप में पहचान दिलाई।
प्रमुख सहयोगी
- अरविंद केजरीवाल
- किरण बेदी
- प्रशांत भूषण
- मनीष सिसोदिया
- योगेन्द्र यादव
हालाँकि बाद में कुछ मतभेदों के कारण ये साथी अलग हो गए और ‘आम आदमी पार्टी’ की स्थापना हुई, जिससे अन्ना हज़ारे ने खुद को अलग रखा।
सम्मान और पुरस्कार
- पद्मश्री (1990) – ग्रामीण विकास के लिए
- पद्मभूषण (1992) – समाज सेवा के लिए
- UN द्वारा सम्मानित – गांव सुधार मॉडल के लिए
- महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार – 2005
अन्ना हज़ारे के विचार और दर्शन
- गांधीवादी विचारधारा
- अहिंसक आंदोलन और सत्याग्रह
- स्वदेशी अपनाओ और आत्मनिर्भरता
- जनता को जागरूक करो, तभी परिवर्तन होगा
उन्होंने बार-बार कहा:
“मुझे सत्ता नहीं चाहिए, व्यवस्था में बदलाव चाहिए।”
आलोचनाएँ और चुनौतियाँ
- कुछ लोगों ने उन पर संघ और दक्षिणपंथी संगठनों से निकटता के आरोप लगाए।
- राजनीतिक दलों ने उनके आंदोलनों को सरकार अस्थिर करने का प्रयास बताया।
- जनलोकपाल बिल पूर्णतः लागू नहीं हो पाया, जिससे कुछ हताशा भी फैली।
परंतु इन सबके बावजूद अन्ना हज़ारे की निष्ठा और ईमानदारी पर कभी संदेह नहीं हुआ।
वर्तमान स्थिति
अन्ना हज़ारे अब भी रालेगण सिद्धि में रहते हैं और सामाजिक मुद्दों पर समय-समय पर आंदोलन करते रहते हैं। वे राजनीति से दूर रहकर “जनशक्ति” के माध्यम से सुधार में विश्वास रखते हैं।
निष्कर्ष
अन्ना हज़ारे उस व्यक्ति का नाम है जिसने साधारण जीवन जीकर असाधारण परिवर्तन किए। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि केवल नैतिकता, ईमानदारी और जनबल से भी बड़े से बड़े शासन तंत्र को झुकाया जा सकता है। वे आज भी युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं और भारत के गांधीवादी आंदोलनों की परंपरा को जीवित रखे हुए हैं।
"अन्ना हज़ारे केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक चेतना हैं जो हर उस दिल में बसती है जो एक बेहतर भारत का सपना देखता है।"
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