क्रांतिकारी गणेश दामोदर सावरकर: स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सावरकर बंधुओं का योगदान अविस्मरणीय है। वीर सावरकर की चर्चा तो प्रायः होती है, लेकिन उनके बड़े भाई क्रांतिकारी गणेश दामोदर सावरकर (बाबाराव सावरकर) का बलिदान और योगदान उतना प्रसिद्ध नहीं है। वे न केवल एक महान क्रांतिकारी थे, बल्कि एक ओजस्वी राष्ट्रभक्त, समाज सुधारक और संगठनकर्ता भी थे।
प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा
गणेश दामोदर सावरकर का जन्म 13 जून 1879 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भगूर गांव में हुआ था। वे परिवार में सबसे बड़े थे। उनके पिता दामोदरपंत सावरकर और माता राधाबाई धार्मिक विचारों के थे, लेकिन वे अपने बच्चों को राष्ट्रप्रेम और स्वाभिमान की शिक्षा देते थे। गणेश जी की प्रारंभिक शिक्षा नासिक में हुई, और आगे की पढ़ाई पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में हुई।
छोटे भाई वीर सावरकर की भांति गणेश दामोदर सावरकर भी बचपन से ही देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत थे। ब्रिटिश शासन के अत्याचारों को देखकर उनके मन में अंग्रेज़ों के प्रति गहरी घृणा उत्पन्न हुई और वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।
क्रांतिकारी गतिविधियाँ और अभिनव भारत की स्थापना
गणेश दामोदर सावरकर का झुकाव क्रांतिकारी गतिविधियों की ओर बचपन से ही था। 1900 के दशक में जब भारत में क्रांतिकारी गतिविधियाँ तेज हो रही थीं, तब उन्होंने अपने भाई वीर सावरकर और अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर 1904 में "अभिनव भारत" नामक गुप्त क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की।
इस संगठन का उद्देश्य भारत को सशस्त्र क्रांति के माध्यम से स्वतंत्र कराना था। अभिनव भारत के कार्यकर्ताओं ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ गुप्त रूप से कार्य करना शुरू किया। उन्होंने बम बनाने की तकनीक सीखी, विदेशी हथियारों की तस्करी की, और ब्रिटिश अफसरों की गतिविधियों पर नजर रखी।
अभिनव भारत ने महाराष्ट्र, बंगाल और उत्तर भारत में क्रांतिकारी आंदोलन को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस संगठन का संबंध अनुशीलन समिति और गदर पार्टी जैसे अन्य क्रांतिकारी संगठनों से भी था।
नासिक षड्यंत्र केस और आजीवन कारावास
1909 में नासिक में ब्रिटिश अधिकारी ए.एम.टी जैक्सन की हत्या कर दी गई थी। यह हत्या अनंत लक्ष्मण कन्हेरे नामक क्रांतिकारी ने की थी, जो अभिनव भारत से जुड़े हुए थे। इस हत्या के बाद ब्रिटिश सरकार ने अभिनव भारत के कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया।
गणेश दामोदर सावरकर को भी इस षड्यंत्र में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया और 1909 में उन्हें आजन्म कारावास (काले पानी की सजा) सुनाई गई। उन्हें अंडमान-निकोबार की कुख्यात सेलुलर जेल में भेज दिया गया, जहाँ उन्होंने अमानवीय यातनाएँ झेली।
सेलुलर जेल में उन्हें कठोर श्रम कराया जाता था। खाने के नाम पर मात्र उबला हुआ चावल और गंदा पानी दिया जाता था। लेकिन इस सबके बावजूद, गणेश सावरकर और उनके साथी क्रांतिकारी अपने संघर्ष से पीछे नहीं हटे।
स्वास्थ्य और जेल से रिहाई
लगभग 13 वर्षों तक अंडमान की जेल में कठिन यातनाएँ सहने के बाद 1922 में उनका स्वास्थ्य गंभीर रूप से खराब हो गया। ब्रिटिश सरकार को मजबूरी में उन्हें रिहा करना पड़ा, लेकिन उनकी गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी गई और उन्हें सार्वजनिक रूप से किसी भी राजनीतिक आंदोलन में भाग लेने की अनुमति नहीं दी गई।
स्वतंत्रता संग्राम के बाद का जीवन
जेल से रिहा होने के बाद भी गणेश दामोदर सावरकर क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रहे। उन्होंने हिंदू महासभा के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक कार्य किए। वे भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के समर्थक थे और समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ भी आवाज उठाते रहे।
हालांकि, जेल में मिली प्रताड़नाओं के कारण उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता गया। 16 मार्च 1945 को इस महान क्रांतिकारी ने अंतिम सांस ली।
गणेश दामोदर सावरकर का योगदान और विरासत
गणेश सावरकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे नायक थे, जिनका योगदान इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया। उनके बलिदान को उतनी प्रसिद्धि नहीं मिली, जितनी अन्य क्रांतिकारियों को मिली। लेकिन यह सत्य है कि यदि गणेश सावरकर और उनके जैसे अन्य क्रांतिकारी न होते, तो भारत की स्वतंत्रता का संघर्ष और भी लंबा और कठिन हो सकता था।
मुख्य योगदान:
अभिनव भारत संगठन की स्थापना, जिसने भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन को संगठित किया।
युवा क्रांतिकारियों को प्रशिक्षित करना और ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन चलाना।
सेलुलर जेल में कठोर यातनाएँ झेलकर भी क्रांतिकारी भावना को जीवित रखना।
स्वतंत्रता के बाद सामाजिक सुधार और हिंदू महासभा के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में योगदान।
निष्कर्ष
गणेश दामोदर सावरकर एक सच्चे देशभक्त और क्रांति के अग्रदूत थे। उनका जीवन त्याग, संघर्ष और बलिदान का अनुपम उदाहरण है। आज जब हम स्वतंत्र भारत में सांस ले रहे हैं, तो हमें उन वीर सपूतों को याद रखना चाहिए, जिनकी कुर्बानियों से हमें यह आजादी मिली है।
गणेश सावरकर का जीवन संदेश देता है कि राष्ट्र के लिए समर्पित एक व्यक्ति भी इतिहास की धारा को मोड़ सकता है। हमें उनके विचारों से प्रेरणा लेकर अपने देश की उन्नति के लिए कार्य करना चाहिए।
"शत-शत नमन उस क्रांतिकारी को, जिसने अपना जीवन मातृभूमि के लिए समर्पित कर दिया!"
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