राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू: संघर्ष से सर्वोच्च शिखर तक की एक प्रेरक यात्रा(जन्म 20 जून 1958)

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू: संघर्ष से सर्वोच्च शिखर तक की एक प्रेरक यात्रा(जन्म 20 जून 1958)
परिचय

द्रौपदी मुर्मू भारत की 15वीं और वर्तमान राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने 25 जुलाई 2022 को इस सर्वोच्च संवैधानिक पद की शपथ ली। वह भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति होने के साथ-साथ, देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति भी हैं। उनका जीवन, संघर्ष, समर्पण और संकल्प का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो भारत के हाशिए पर खड़े समुदायों के लिए प्रेरणा का एक अक्षय स्रोत है। उनका उदय भारतीय लोकतंत्र की समावेशिता और सशक्तिकरण का जीवंत प्रमाण है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में एक संथाल आदिवासी परिवार में हुआ था। उनके पिता, बिरंची नारायण टुडू, एक ग्राम प्रधान थे और पंचायती राज व्यवस्था में सक्रिय रूप से जुड़े हुए थे, जिससे द्रौपदी को बचपन से ही सार्वजनिक सेवा के प्रति रुझान मिला।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालयों में हुई। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने भुवनेश्वर के रमा देवी विमेंस कॉलेज से कला संकाय में स्नातक (बी.ए.) की उपाधि प्राप्त की। यह उस समय आदिवासी समुदाय की एक लड़की के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी, जिसने उनके आगे के जीवन के लिए मार्ग प्रशस्त किया।

व्यावसायिक जीवन की शुरुआत

अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, द्रौपदी मुर्मू ने 1983 में ओडिशा सरकार के जल आपूर्ति और स्वच्छता विभाग में एक कनिष्ठ सहायक के रूप में अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत की। सरकारी सेवा के बाद, उन्होंने रायरंगपुर के श्री अरबिंदो इंटीग्रल स्कूल में शिक्षिका के रूप में भी कार्य किया। शिक्षण के इस अनुभव ने उन्हें समाज के साथ सीधे जुड़ने और युवाओं को प्रेरित करने का अवसर प्रदान किया।

राजनीतिक जीवन का आरंभ

द्रौपदी मुर्मू ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। उनकी यात्रा एक जमीनी स्तर की कार्यकर्ता से शुरू होकर देश के सर्वोच्च पद तक पहुंची है, जो उनके समर्पण और राजनीतिक कौशल को दर्शाती है:

 * 1997: उन्हें रायरंगपुर नगर पंचायत की पार्षद चुना गया, जो उनके सार्वजनिक जीवन में पहला महत्वपूर्ण कदम था।

 * 1997-2009: इस दौरान, वह भाजपा की आदिवासी मोर्चा की सक्रिय सदस्य रहीं और विभिन्न संगठनात्मक दायित्वों का निर्वहन किया, जिससे उनकी पहचान एक सशक्त आदिवासी नेता के रूप में बनी।

 * 2000-2004: ओडिशा सरकार में उन्होंने वाणिज्य और परिवहन विभाग की राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और मत्स्य और पशु संसाधन विकास विभाग की राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने राज्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

 * 2004: उन्हें रायरंगपुर से विधायक चुना गया। इस कार्यकाल के दौरान उन्हें श्रेष्ठ विधायक पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया, जो उनकी प्रभावी कार्यशैली और जनहितैषी दृष्टिकोण का प्रमाण है।

राज्यपाल के रूप में कार्यकाल

2015 में, द्रौपदी मुर्मू को झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया। यह उनके राजनीतिक जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। वह झारखंड की पहली महिला राज्यपाल होने के साथ-साथ, पहली आदिवासी राज्यपाल भी थीं। उनका कार्यकाल 6 वर्षों तक चला (2015-2021), जो किसी भी राज्यपाल का झारखंड में अब तक का सबसे लंबा कार्यकाल रहा। राज्यपाल के रूप में, उन्होंने संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करते हुए राज्य के विकास और आदिवासी कल्याण के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए।

भारत की राष्ट्रपति के रूप में चयन
18 जुलाई 2022 को राष्ट्रपति चुनाव हुआ, जिसमें द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की ओर से उम्मीदवार बनाया गया। 21 जुलाई 2022 को उन्हें 64% से अधिक मतों के साथ ऐतिहासिक जीत मिली। 25 जुलाई 2022 को, उन्होंने भारत की 15वीं राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली और कई मायनों में इतिहास रचा:

 * वह भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनीं।

 * वह भारत की सबसे युवा राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने 64 वर्ष की आयु में शपथ ली।

 * वह भारत की दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं, प्रतिभा पाटिल के बाद।

महत्व और प्रेरणा

द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना कई दृष्टियों से ऐतिहासिक और प्रेरणादायक है:

 * सामाजिक समावेशिता का प्रतीक: एक आदिवासी महिला का देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंचना भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता और सामाजिक समावेशिता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह दर्शाता है कि भारत में किसी भी पृष्ठभूमि का व्यक्ति अपनी योग्यता और परिश्रम से सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर सकता है।

 * महिला सशक्तिकरण की मिसाल: उन्होंने कठिन सामाजिक और पारिवारिक परिस्थितियों का सामना करते हुए भी हार नहीं मानी। पति और दो बेटों को कम उम्र में खोने के बावजूद, उन्होंने अपने दृढ़ संकल्प और साहस से आगे बढ़कर नेतृत्व किया, जो लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

 * आदिवासी समुदाय का गौरव: वह न केवल संथाल समाज बल्कि संपूर्ण जनजातीय भारत की पहचान और आशा की प्रतीक हैं। उनका राष्ट्रपति बनना आदिवासी समुदायों में आत्मविश्वास और सम्मान की भावना को बढ़ाता है।

व्यक्तित्व और संघर्ष

द्रौपदी मुर्मू का जीवन व्यक्तिगत त्रासदियों और संघर्षों से भरा रहा है। उन्होंने अपने पति और दो पुत्रों को अल्प समय में खो दिया, जो किसी भी व्यक्ति के लिए अकल्पनीय दुःख का कारण होता है। हालांकि, इन विपत्तियों ने उन्हें तोड़ने के बजाय और मजबूत बनाया। उन्होंने धैर्य और दृढ़ता के साथ इन चुनौतियों का सामना किया और सामाजिक कार्यों व राजनीति में सक्रिय बनी रहीं।
वह एक आध्यात्मिक प्रवृत्ति की महिला हैं और उन्होंने कई वर्षों तक ब्रह्मकुमारी संस्था से आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त की है। उनकी यह आध्यात्मिक पृष्ठभूमि उन्हें आंतरिक शांति और शक्ति प्रदान करती है, जो उनके सार्वजनिक जीवन में भी परिलक्षित होती है।

सम्मान और पुरस्कार

उनके उत्कृष्ट सार्वजनिक सेवा और समर्पण के लिए उन्हें कई सम्मान प्राप्त हुए हैं:
 * नीलकंठ अवार्ड: 2007 में उन्हें ओडिशा विधानसभा द्वारा उत्कृष्ट विधायक के रूप में इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
 * इसके अतिरिक्त, सामाजिक सेवा, शिक्षा और महिलाओं के उत्थान में उनके योगदान के लिए उन्हें विभिन्न मंचों पर सम्मानित किया गया है।

निष्कर्ष

द्रौपदी मुर्मू का जीवन केवल एक महिला की कहानी नहीं है, यह भारत के लोकतंत्र की विजयगाथा है। यह एक ऐसी गाथा है जो दर्शाती है कि चाहे व्यक्ति कितनी भी विषम परिस्थिति में क्यों न जन्मा हो, कर्म, शिक्षा और आत्मबल से वह सर्वोच्च शिखरों को छू सकता है। उनकी प्रेरक यात्रा हर भारतीय के लिए, विशेषतः महिलाओं और आदिवासी युवाओं के लिए एक उज्ज्वल दीपशिखा की तरह है, जो उन्हें सपनों को पूरा करने और देश के विकास में योगदान देने के लिए प्रेरित करती है। उनका कार्यकाल भारत को एक नए युग की ओर ले जाने की संभावना रखता है, जहां सभी वर्गों के लोगों को समानता और अवसर प्राप्त हो सकें।

Post a Comment

0 Comments