प्रणब मुखर्जी: भारतीय राजनीति के संकटमोचक और संविधान के संरक्षक (11 दिसंबर, 1935- 31 अगस्त, 2020)


प्रणब मुखर्जी: भारतीय राजनीति के संकटमोचक और संविधान के संरक्षक (11 दिसंबर, 1935- 31 अगस्त, 2020)
भूमिका 

आधुनिक भारतीय राजनीति में कुछ ही ऐसे व्यक्तित्व हुए हैं जिनका प्रभाव दलगत सीमाओं से परे रहा हो। इन्हीं में से एक थे प्रणब मुखर्जी। एक कुशल राजनेता, विद्वान, प्रशासक, और भारत के 13वें राष्ट्रपति, उनका जीवन भारतीय राजनीति में धैर्य, अनुभव और दूरदर्शिता का प्रतीक माना जाता है। उन्हें अक्सर भारतीय राजनीति का 'संकटमोचक' और 'सर्व-स्वीकार्य नेता' कहा जाता था। उनका व्यक्तित्व और कार्य राष्ट्रहित के प्रति उनके अटूट समर्पण को दर्शाते हैं। 
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर, 1935 को पश्चिम बंगाल के मिराटी गांव में हुआ था। उनके पिता, कामदा किंकर मुखर्जी, एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जिसने प्रणब दा के भीतर बचपन से ही राष्ट्रसेवा की भावना जगा दी। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की और बाद में एल.एल.बी. की पढ़ाई भी पूरी की। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने एक शिक्षक और पत्रकार के रूप में अपना करियर शुरू किया, लेकिन नियति ने उनके लिए राजनीति का मार्ग चुना था।
मंत्री के रूप में बहुआयामी योगदान

प्रणब मुखर्जी का राजनीतिक जीवन 1969 में शुरू हुआ, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें राज्यसभा भेजा। इसके बाद उन्होंने विभिन्न सरकारों में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया और हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ी।
 
 वित्त मंत्री: वे दो बार (1982-84 और 2009-12) भारत के वित्त मंत्री रहे। 1982 में उन्होंने 'ड्रीम बजट' पेश किया, जो अपनी दूरदर्शिता के लिए जाना जाता है। वे 1991 के आर्थिक सुधारों की नींव रखने वाले प्रमुख व्यक्तियों में से थे।

  विदेश मंत्री: दो बार (1995-96 और 2006-09) विदेश मंत्री के रूप में, उन्होंने भारत की विदेश नीति को नई दिशा दी। उन्होंने अमेरिका, रूस और चीन सहित कई देशों के साथ भारत के संबंधों को मजबूत किया।

 रक्षा मंत्री: 2004 से 2006 तक रक्षा मंत्री के रूप में, उन्होंने भारतीय रक्षा तंत्र को आधुनिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अपनी बहुमुखी प्रतिभा के कारण, उन्हें कांग्रेस पार्टी का 'क्राइसिस मैनेजर' कहा जाता था। उन्होंने इंदिरा गांधी से लेकर मनमोहन सिंह तक कई प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया, जिससे उनकी राजनीतिक समझ और स्वीकार्यता का पता चलता है।

राष्ट्रपति के रूप में संविधान की रक्षा

25 जुलाई, 2012 को प्रणब मुखर्जी ने भारत के 13वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति भवन में उनका कार्यकाल भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। उन्होंने हमेशा संविधान के मूल्यों और परंपराओं को सर्वोच्च रखा। वे दलगत राजनीति से ऊपर उठकर एक सच्चे राष्ट्र के प्रतिनिधि बने। उन्होंने दया याचिकाओं पर विवेकपूर्ण निर्णय लिए और शिक्षा, कला और संस्कृति को प्रोत्साहित किया। उनका कार्यकाल शालीनता, गरिमा और संवैधानिक निष्पक्षता का पर्याय बन गया।

साहित्यिक योगदान और सम्मान

प्रणब मुखर्जी न केवल एक राजनेता थे, बल्कि एक प्रखर लेखक और विचारक भी थे। उन्होंने भारतीय राजनीति पर कई महत्वपूर्ण किताबें लिखीं, जिनमें 'द ड्रामेटिक डिकेड', 'द टर्बुलेंट इयर्स', और 'द कोएलिशन इयर्स' प्रमुख हैं। 2019 में, उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
31 अगस्त, 2020 को उनका निधन हो गया। उनके जाने से भारतीय राजनीति में एक ऐसा शून्य पैदा हो गया है जिसे भरना मुश्किल है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि राजनीति केवल सत्ता का खेल नहीं, बल्कि राष्ट्रसेवा और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा का एक पवित्र माध्यम है। 

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