बिहार का 'रॉबिन हुड': नक्षत्र मालाकार - संघर्ष की अमर गाथा(09 अक्टूबर 1905- 27 सितम्बर 1987)
भारत के स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक न्याय के आंदोलन के इतिहास में ऐसे कई नायक हुए हैं, जिनकी गाथाएँ आज भी लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उन्हीं में से एक थे बिहार के 'रॉबिन हुड' कहे जाने वाले महान क्रांतिकारी और जननेता नक्षत्र मालाकार। उनका जीवन ब्रिटिश सत्ता और देश के सामंती अत्याचार के खिलाफ एक अथक संघर्ष की कहानी है, जिसने गरीबों और शोषितों के मन में न्याय की उम्मीद जगाई।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
नक्षत्र मालाकार का जन्म 09 अक्टूबर 1905 को तत्कालीन पूर्णिया जिले (वर्तमान कटिहार जिला) के सेमली गाँव में हुआ था। उन्होंने अपना प्रारंभिक जीवन गरीबी और आस-पास के सामंती अत्याचारों को देखकर व्यतीत किया, जिसने उनके मन में अन्याय के खिलाफ लड़ने की लौ जलाई।
आजादी के लिए संघर्ष (1925 - 1947)
मालाकार जी ने अपने युवा काल में ही देश की आजादी के आंदोलन में कदम रख दिया था।
कांग्रेस से शुरुआत: प्रारंभिक दौर में वे कांग्रेस पार्टी से जुड़े और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे।
जेल यात्राएँ: आजादी के लिए संघर्ष के दौरान, उन्होंने ब्रिटिश सरकार की क्रूरता का सामना किया और 09 बार जेल गए, जो देश की स्वतंत्रता के प्रति उनके अटूट समर्पण को दर्शाता है।
सोशलिस्ट पार्टी में प्रवेश: एक कांग्रेसी नेता द्वारा गरीबों पर किए गए अत्याचार और एक बकरी विवाद की घटना ने उनके मोह को भंग कर दिया। सामाजिक न्याय के अपने आदर्शों को साधने के लिए उन्होंने 1936 में कांग्रेस छोड़कर सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए और उन्हें मजदूर यूनियन का अध्यक्ष बनाया गया।
रॉबिन हुड की कार्यशैली
नक्षत्र मालाकार को 'बिहार का रॉबिन हुड' उपनाम मिला, जो उनकी न्याय की अनूठी शैली के कारण था। वे अत्याचारी, सामंतवादी और बलात्कारी प्रवृत्ति के लोगों को उनकी क्रूरता के लिए सार्वजनिक रूप से दंडित करते थे, जिसमें कान या नाक काटकर सजा देना भी शामिल था। यह कठोर तरीका गरीबों के बीच एक निर्भीक रक्षक के रूप में उनकी छवि को स्थापित करता था।
प्रमुख आंदोलन और संघर्ष
मालाकार जी का नेतृत्व कई महत्वपूर्ण आंदोलनों में देखा गया:
1936: कटिहार मिल मजदूर हड़ताल: उन्होंने कटिहार में मिल मजदूरों की ऐतिहासिक हड़ताल का नेतृत्व किया, जिससे मजदूरों को उनके अधिकार मिल सके।
1942: भारत छोड़ो आंदोलन: देशव्यापी भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई और इसी दौरान रूपौली थाना उड़ाने जैसी साहसिक घटना को अंजाम दिया।
1947: अकाल पीड़ितों की मदद: पूर्णिया में पड़े भीषण अकाल के दौरान, उन्होंने साहूकारों और जमींदारों के अनाज को लूटकर अकाल पीड़ितों और गरीबों में बाँट दिया, जिससे हजारों लोगों की जान बच सकी।
आजाद भारत में संघर्ष और जेल जीवन
देश को आजादी मिलने के बाद भी, मालाकार जी का संघर्ष समाप्त नहीं हुआ। उन्होंने सत्ता की नई व्यवस्था में भी सामंतवाद और पूंजीवाद के खिलाफ आवाज उठाना जारी रखा।
गिरफ्तारी और आजीवन कारावास: 1952 में, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई। उन्होंने आज़ादी के बाद के भारत में भी 14 साल जेल में बिताए और 1966 में रिहा हुए। यह दर्शाता है कि सत्ता किसी की भी हो, उनका संघर्ष केवल न्याय के लिए था।
1966 से मृत्यु तक जन-नेतृत्व
जेल से बाहर आने के बाद भी, नक्षत्र मालाकार ने अपना जनसेवा और संघर्ष जारी रखा:
1967: झील खुदाई आंदोलन: उन्होंने कटिहार में झील की खुदाई का नेतृत्व किया, जिससे किसानों के खेतों तक पानी पहुँचा और उनकी खेती को सहारा मिला।
1968: ततमा टोला का निर्माण: उन्होंने जमींदारों से संघर्ष करके 14 बीघा जमीन मुक्त करवाई और उस पर कटिहार ततमा टोला का निर्माण किया, जिससे बेघरों को आश्रय मिला।
1967: रैयत जमीन का वितरण: उन्होंने जमींदारों के कब्जे से लगभग 300 एकड़ गौर रैयत जमीन मुक्त करवाकर गरीबों में बाँट दी।
शिक्षा के लिए योगदान: उन्होंने भगवती मंदिर महाविद्यालय के लिए 90 एकड़ जमीन साहूकारों से मुक्त करवाकर उपलब्ध करवाई, जिससे क्षेत्र में शिक्षा का मार्ग प्रशस्त हुआ।
राजनीतिक जीवन और अंतिम यात्रा
1985 में, नक्षत्र मालाकार ने फारबिसगंज विधान सभा से सी.पी.एम. के टिकट पर चुनाव लड़ा, हालाँकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा। अपने पूरे जीवनकाल में, उन्होंने शोषितों और पीड़ितों के लिए संघर्ष किया। यह महान जननायक, जिसने स्वतंत्रता से पहले और बाद में कुल 23 वर्ष जेल में बिताए, 27 सितम्बर 1987 को इस दुनिया को अलविदा कह गया। नक्षत्र मालाकार का जीवन एक उदाहरण है कि सच्चा नेता वह होता है जो सत्ता या सुविधा के बजाय न्याय और मानवता के लिए जीता है। उनकी पुण्यतिथि पर, हमें उनके त्याग और संघर्ष को याद करते हुए, उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए।

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