राय बहादुर दया राम साहनी: सिंधु घाटी सभ्यता के अग्रदूत (16 दिसंबर, 1879 -7 मार्च 1939)
राय बहादुर दया राम साहनी (Rai Bahadur Daya Ram Sahni) भारतीय पुरातत्व के इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं, जिन्हें मुख्य रूप से हड़प्पा (Harappa) के प्राचीन स्थल की खोज और प्रारंभिक उत्खनन से जोड़ा जाता है। उनकी कर्मठता और विद्वता ने सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) के रहस्यों को दुनिया के सामने लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रारंभिक जीवन और करियर
दया राम साहनी का जन्म 16 दिसंबर, 1879 को ब्रिटिश भारत के शाहपुर (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा पंजाब विश्वविद्यालय से प्राप्त की और जल्द ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India - ASI) में शामिल हो गए। वह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक बनने वाले पहले भारतीय थे, एक ऐसा पद जो उन्होंने 1931 से 1935 तक संभाला।
हड़प्पा की महान खोज
साहनी का सबसे बड़ा योगदान 1920 और 1921 के बीच हड़प्पा स्थल के उत्खनन से संबंधित है।
पुनः-खोज और पहचान: जॉन मार्शल (John Marshall) के महानिदेशक रहते हुए, साहनी को हड़प्पा की जांच का कार्य सौंपा गया। उन्होंने बड़े पैमाने पर उत्खनन किया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि यह स्थल एक साधारण प्राचीन टीला नहीं, बल्कि एक उन्नत और विशाल नगरीय सभ्यता का हिस्सा था।
सिंधु घाटी की घोषणा: साहनी के निष्कर्षों और राखालदास बनर्जी (R.D. Banerji) द्वारा मोहनजोदड़ो में किए गए लगभग समकालीन कार्यों के आधार पर, जॉन मार्शल ने 1924 में औपचारिक रूप से एक नई, प्राचीन सभ्यता, जिसे अब सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से जाना जाता है, की घोषणा की।
वैज्ञानिक पद्धति: साहनी ने उत्खनन में व्यवस्थित और वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग किया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि महत्वपूर्ण पुरातात्विक साक्ष्यों को सही ढंग से दर्ज और संरक्षित किया जाए।
भारतीय पुरातत्व में योगदान
ASI के महानिदेशक के रूप में, साहनी ने भारत में पुरातत्व के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए:
उन्होंने कई अन्य पुरातात्विक स्थलों पर उत्खनन और संरक्षण कार्यों को बढ़ावा दिया।
उन्होंने भारतीय पुरातत्व को एक मजबूत संस्थागत आधार प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विरासत
दया राम साहनी का कार्य न केवल भारत के इतिहास को हज़ारों साल पीछे ले गया, बल्कि इसने यह भी स्थापित किया कि भारतीय सभ्यता मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं जितनी ही प्राचीन है। उन्होंने भारत की सांस्कृतिक विरासत को समझने के लिए एक नई नींव रखी। 7 मार्च 1939 में उनका निधन हो गया, लेकिन सिंधु घाटी सभ्यता के महानतम अग्रदूतों में से एक के रूप में उनकी विरासत आज भी जीवित है।

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