सैम मानेकशॉ: भारतीय सेना के वीर योद्धा(3 अप्रैल 1914-27 जून 2008)

सैम मानेकशॉ: भारतीय सेना के वीर योद्धा


सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ, जिन्हें लोकप्रिय रूप से फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के नाम से जाना जाता है, भारतीय सेना के महानतम जनरलों में से एक थे। उनका जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था। उनकी वीरता, नेतृत्व क्षमता और राष्ट्रभक्ति के कारण वे भारतीय सैन्य इतिहास में एक अद्वितीय स्थान रखते हैं।

प्रारंभिक जीवन और सैन्य करियर

सैम मानेकशॉ ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में प्राप्त की। इसके बाद वे 1932 में भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए), देहरादून में शामिल हुए और 1934 में ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप में नियुक्त हुए। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा (वर्तमान म्यांमार) में अपनी वीरता का परिचय दिया। युद्ध के दौरान वे गंभीर रूप से घायल हो गए थे, लेकिन उनकी अदम्य इच्छा शक्ति और साहस ने उन्हें पुनः युद्धभूमि में सक्रिय कर दिया।

उनका सैन्य करियर पांच दशकों तक फैला रहा, जिसमें उन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। उन्होंने 1947 के भारत-पाक विभाजन के दौरान भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारत की सुरक्षा को सुनिश्चित किया। 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय वे रक्षा मंत्रालय में महत्वपूर्ण प्रशासनिक भूमिका में थे और सेना के आधुनिकीकरण की वकालत कर रहे थे।

1971 का भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश की स्वतंत्रता

सैम मानेकशॉ को भारतीय सेना का प्रमुख (चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ) 1969 में नियुक्त किया गया। उनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में विजय प्राप्त की, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ। इस युद्ध में उनकी रणनीतिक सोच, कुशल नेतृत्व और आत्मविश्वास की विशेष भूमिका रही। उनकी योजना के कारण पाकिस्तान की सेना ने मात्र 13 दिनों में आत्मसमर्पण कर दिया, जो सैन्य इतिहास की सबसे तेज जीतों में से एक मानी जाती है।

इस युद्ध से पहले, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब उनसे युद्ध के लिए तत्परता के बारे में पूछा, तो उन्होंने बेझिझक जवाब दिया कि सेना को पूरी तैयारी के लिए कुछ महीनों का समय चाहिए। उनकी दूरदर्शिता और संयम ने सुनिश्चित किया कि भारतीय सेना को निर्णायक विजय प्राप्त हो। इस युद्ध में लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किसी भी युद्ध में सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था।

फील्ड मार्शल की उपाधि

उनकी असाधारण सेवाओं को देखते हुए, भारत सरकार ने उन्हें 1 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल की उपाधि से सम्मानित किया। वे भारत के पहले अधिकारी थे जिन्हें यह सर्वोच्च सैन्य पद प्राप्त हुआ। उनके बाद केवल फील्ड मार्शल के. एम. करियप्पा को यह सम्मान मिला।

फील्ड मार्शल की उपाधि भारतीय सेना में केवल उन्हीं अधिकारियों को दी जाती है जिन्होंने सैन्य रणनीति और प्रशासन में उत्कृष्ट योगदान दिया हो। सैम मानेकशॉ को उनकी स्पष्टवादिता, निर्भीकता और अपने सैनिकों के प्रति अपार स्नेह के लिए जाना जाता था।

सेवानिवृत्ति और अंतिम वर्ष

सैम मानेकशॉ 15 जनवरी 1973 को सेना से सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति के बाद वे तमिलनाडु के कुन्नूर में बस गए। वे सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करते रहे और सैन्य विषयों पर परामर्श देते रहे। उन्होंने कभी भी राजनीतिक जीवन में प्रवेश नहीं किया, हालांकि उन्हें कई बार महत्वपूर्ण पदों की पेशकश की गई थी।

27 जून 2008 को 94 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। दुखद रूप से, उनके निधन पर भारत सरकार की ओर से अपेक्षित सम्मान नहीं दिया गया, हालांकि सेना और उनके प्रशंसकों ने उन्हें पूरा सम्मान दिया।

विरासत और योगदान

सैम मानेकशॉ को उनके निर्भीक स्वभाव, स्पष्टवादिता और हास्यप्रियता के लिए जाना जाता था। वे सैनिकों के बीच अत्यंत लोकप्रिय थे और उनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त कीं। उन्होंने हमेशा सैनिकों की भलाई के लिए कार्य किया और सेना में आधुनिकीकरण के प्रयासों का समर्थन किया।

उनका जीवन और कार्य भारत के हर नागरिक के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उनकी देशभक्ति, अनुशासन और नेतृत्व क्षमता आज भी भारतीय सेना के अधिकारियों और जवानों के लिए एक मिसाल बनी हुई है।

सम्मान और स्मारक

सैम मानेकशॉ को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए। उनके सम्मान में कई स्थानों के नामकरण किए गए हैं, और उनके जीवन पर आधारित कई लेख और वृत्तचित्र बनाए गए हैं।

निष्कर्ष:

फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ भारतीय सेना के एक अमर योद्धा थे, जिन्होंने न केवल युद्ध के मैदान में बल्कि प्रशासनिक स्तर पर भी असाधारण नेतृत्व का परिचय दिया। उनके योगदान को भारत सदैव स्मरण रखेगा और आने वाली पीढ़ियाँ उनसे प्रेरणा लेती रहेंगी। उनकी विरासत भारतीय सेना और पूरे राष्ट्र के लिए एक गौरव का विषय है।


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