रणधीर सिंह: एक निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी चिंतक(जन्म तिथि: 15 जुलाई 1892- मृत्यु तिथि: 31 जनवरी 1991)

रणधीर सिंह: एक निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी चिंतक(जन्म तिथि: 15 जुलाई 1892- मृत्यु तिथि: 31 जनवरी 1991)

परिचय

रणधीर सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन अद्वितीय क्रांतिकारियों और चिंतकों में से एक थे, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष करते हुए भारतीय समाज को सामाजिक न्याय, नैतिकता और वैचारिक प्रतिबद्धता का मार्ग दिखाया। वे केवल स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं थे, बल्कि भारत में समाजवादी राजनीतिक दर्शन के प्रमुख स्तंभ, एक शिक्षक, लेखक, और गहरे नैतिक मूल्यों से ओतप्रोत कर्मयोगी भी थे। उनका जीवन सच्चे अर्थों में तप, बलिदान और बौद्धिक साधना का संगम था। उनका योगदान न केवल भारत की आज़ादी में रहा, बल्कि उन्होंने स्वतंत्र भारत के निर्माण में भी वैचारिक स्तर पर गहरी भूमिका निभाई।

जन्म और प्रारंभिक जीवन
जन्म तिथि: 15 जुलाई 1892
जन्म स्थान: पटियाला, पंजाब
पारिवारिक पृष्ठभूमि: एक शिक्षित एवं सुसंस्कृत सिख परिवार में जन्मे रणधीर सिंह को प्रारंभ से ही नैतिकता, धर्म और शिक्षा का उच्च संस्कार मिला।
रणधीर सिंह ने प्रारंभिक शिक्षा पटियाला में प्राप्त की और उच्च शिक्षा के लिए वे लाहौर के प्रतिष्ठित फॉर्मन क्रिश्चियन कॉलेज गए, जहाँ से उन्होंने दर्शनशास्त्र में स्नातक और फिर परास्नातक की उपाधियाँ प्राप्त कीं। उनकी बौद्धिक रुचि प्रारंभ से ही दार्शनिक विषयों, सामाजिक न्याय और नैतिकता में थी।

प्रोफेसर के रूप में आरंभिक करियर:

वे पटियाला के महेन्द्र कॉलेज में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हुए और शीघ्र ही छात्रों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हो गए। अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और छात्रों के प्रति अपने प्रेम के कारण वे एक प्रेरणादायक शिक्षक के रूप में जाने जाते थे। किंतु ब्रिटिश दमन और असमानता ने उनके अंतर्मन को झकझोर दिया और उन्होंने अकादमिक जीवन छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम की राह पकड़ी, यह मानते हुए कि देश की मुक्ति से बड़ा कोई कर्तव्य नहीं है।

क्रांतिकारी चेतना और स्वतंत्रता संग्राम

रणधीर सिंह का जीवन एक मोड़ पर तब पहुँचा जब 1919 में जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने समूचे देश को स्तब्ध कर दिया। इस हृदयविदारक घटना ने उन्हें अंदर तक हिला दिया। उन्होंने यह महसूस किया कि केवल भाषणों और लेखन से देश की सेवा नहीं की जा सकती, बल्कि इसके लिए संघर्ष और बलिदान आवश्यक है। उन्होंने अपने आरामदायक प्रोफेसर की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और पूरी तरह से क्रांतिकारी आंदोलनों से जुड़ गए।
वे ग़दर पार्टी, नौजवान भारत सभा, और बाद में कांग्रेस सोशलिस्ट ग्रुप से भी जुड़े। उन्होंने युवाओं को जागरूक किया, क्रांतिकारी साहित्य का प्रचार किया और कई आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी की। वे ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सशक्त प्रतिरोध के प्रबल समर्थक थे और मानते थे कि बिना क्रांतिकारी बदलाव के वास्तविक स्वतंत्रता असंभव है। उनकी विचारधारा का गहरा संबंध भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव जैसे युवाओं से था, जो उन्हें एक आदर्श विचारक और मार्गदर्शक मानते थे। रणधीर सिंह ने इन युवा क्रांतिकारियों के विचारों को न केवल प्रभावित किया, बल्कि उन्हें सैद्धांतिक आधार भी प्रदान किया।

कारावास और वैचारिक परिवर्तन

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में रणधीर सिंह की भूमिका ने उन्हें ब्रिटिश सरकार की आँखों का काँटा बना दिया। 1930 में लाहौर षड्यंत्र केस में उन्हें दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा दी गई। यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। वे लगभग 15 वर्षों तक जेलों में रहे, जिनमें अधिकांश समय उन्होंने गहन अध्ययन, आत्ममंथन और लेखन में बिताया।
जेल की काल-कोठरियाँ उनके लिए तपस्या का केंद्र बन गईं। यहाँ उन्होंने गीता, गुरुबाणी, मार्क्स, गांधी और टॉल्स्टॉय जैसे महान विचारकों का गहन अध्ययन किया। इस अवधि में उनके विचारों में एक गहरा परिपक्वता आई। इसके बाद वे एक ऐसे समाजवादी चिंतक के रूप में उभरे जो भारतीय धार्मिक दर्शन, नैतिकता और पश्चिमी समाजवाद के समन्वय पर आधारित था। रणधीर सिंह मानते थे कि सामाजिक परिवर्तन केवल आर्थिक क्रांति से नहीं, बल्कि नैतिक और वैचारिक जागरण से संभव है। उनके अनुसार, वास्तविक क्रांति मन और आत्मा के शुद्धिकरण से आती है।

स्वतंत्रता के बाद का योगदान

आज़ादी के बाद रणधीर सिंह ने सक्रिय राजनीति से दूरी बनाते हुए शैक्षणिक और वैचारिक नेतृत्व को अपनाया। वे पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर और बाद में डीन बने। इस भूमिका में उन्होंने अनगिनत छात्रों को प्रेरित किया और उन्हें नैतिक एवं सामाजिक सरोकारों के प्रति जागरूक किया।
उन्होंने कई महत्वपूर्ण लेख, भाषण और पुस्तकें लिखीं जो आज भी भारतीय राजनीतिक चिंतन के संदर्भ में अद्वितीय मानी जाती हैं। उनका मानना था कि—
"राजनीति का मूल उद्देश्य सत्ता प्राप्ति नहीं, बल्कि समाज का नैतिक रूपांतरण होना चाहिए।"

वे भारतीय समाज में व्याप्त असमानताओं और नैतिक पतन को लेकर चिंतित थे और अपने लेखन के माध्यम से इन समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास करते रहे।

प्रमुख कृतियाँ

रणधीर सिंह की रचनाएँ दर्शन, राजनीति, समाज और नैतिकता के गहरे अंतर्संबंध को प्रकट करती हैं। उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं:
 * "Reason, Revolution and Political Theory": यह उनकी सबसे महत्वपूर्ण कृतियों में से एक है, जिसमें उन्होंने राजनीतिक सिद्धांत और क्रांतिकारी परिवर्तन के बीच के संबंधों पर गहराई से विचार किया।
 * "The Crisis of Political Theory": इस पुस्तक में उन्होंने समकालीन राजनीतिक सिद्धांतों की सीमाओं और चुनौतियों का विश्लेषण किया।
 * "Gandhi, Nehru and the Struggle for Freedom": इसमें उन्होंने भारत के दो प्रमुख नेताओं के विचारों और स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका का मूल्यांकन किया।
 * "Jail Diary and Other Writings": यह उनकी जेल में लिखी गई डायरी और अन्य लेखों का संग्रह है, जो उनके गहन आत्मचिंतन और बौद्धिक विकास को दर्शाता है।
 * "Indian Politics Today: Some Remarks": इसमें उन्होंने स्वतंत्र भारत की राजनीतिक स्थिति और दिशा पर अपने विचार व्यक्त किए।
 * "Religion, Politics and History in India": इस कृति में उन्होंने धर्म, राजनीति और भारत के ऐतिहासिक विकास के जटिल संबंधों पर प्रकाश डाला।
इनमें उन्होंने भारतीय राजनीति की नैतिक चुनौतियों, मार्क्सवाद की भारतीय व्याख्या, और धर्म तथा समाज के अंतर्संबंध पर गंभीर विमर्श प्रस्तुत किया, जो आज भी प्रासंगिक हैं।

व्यक्तित्व और दर्शन

रणधीर सिंह का जीवन त्याग, सादगी और वैचारिक प्रतिबद्धता का पर्याय था। उन्होंने कभी कोई सरकारी पद या राजनीतिक लाभ स्वीकार नहीं किया, क्योंकि उनका मानना था कि सच्ची सेवा बिना किसी पद के भी की जा सकती है। वे जीवन भर सादा जीवन, उच्च विचार के आदर्श पर चले। उनकी विनम्रता और स्पष्टवादिता उनके व्यक्तित्व की पहचान थी।
उनके दर्शन की मुख्य विशेषताएँ थीं:
 * नैतिक समाजवाद की स्थापना: वे मानते थे कि समाजवाद केवल आर्थिक समानता नहीं, बल्कि नैतिक मूल्यों पर आधारित होना चाहिए।
 * धर्म और राजनीति के संतुलन की आवश्यकता: उनका विचार था कि धर्म नैतिकता का आधार है और राजनीति को नैतिक सिद्धांतों से निर्देशित होना चाहिए।
 * शिक्षा के माध्यम से वैचारिक क्रांति: वे शिक्षा को समाज परिवर्तन का सबसे शक्तिशाली उपकरण मानते थे।
 * सत्ता की बजाय सेवा को प्राथमिकता: उनके लिए सार्वजनिक जीवन का उद्देश्य सत्ता प्राप्ति नहीं, बल्कि समाज की निःस्वार्थ सेवा था।

मृत्यु और विरासत

मृत्यु तिथि: 31 जनवरी 1991
मृत्यु स्थान: पटियाला, पंजाब
रणधीर सिंह का निधन एक वैचारिक युग के अंत के समान था। उन्होंने अपना पूरा जीवन देश और समाज के लिए समर्पित कर दिया। परंतु उनकी शिक्षाएँ, लेखन और आदर्श आज भी नई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। वे भारत के उन दुर्लभ विचारकों में से थे जिन्होंने क्रांति और आत्मचिंतन, दोनों को एक साथ साधा। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्ची स्वतंत्रता केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि नैतिक और वैचारिक भी होती है।

उपसंहार

रणधीर सिंह का जीवन केवल एक क्रांतिकारी की कहानी नहीं, बल्कि एक वैचारिक यात्रा है, जो स्वतंत्रता से अधिक स्वतंत्र चेतना की स्थापना में विश्वास रखती थी। वे कहते थे—
 "क्रांति केवल बंदूक की नहीं, विचार और आचरण की भी होती है।"
उनके विचार आज भी भारत में लोकतंत्र, समाजवाद और नैतिक राजनीति के लिए मार्गदर्शक हैं। रणधीर सिंह ने हमें सिखाया कि सच्चा परिवर्तन भीतर से आता है, और समाज को बेहतर बनाने के लिए हमें अपने मूल्यों और सिद्धांतों के प्रति दृढ़ रहना चाहिए। ऐसे वीर चिंतक को हमारा शत्-शत् नमन।

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