मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें दुनिया 'महात्मा' (महान आत्मा) और 'बापू' के नाम से जानती है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख राजनीतिक और आध्यात्मिक नेता थे। उनका जीवन सत्य, अहिंसा और सादगी पर आधारित एक ऐसा दर्शन था, जिसने न केवल भारत की आजादी की राह तय की, बल्कि दुनिया भर में नागरिक अधिकारों और स्वतंत्रता आंदोलनों को भी प्रेरित किया।
प्रारंभिक जीवन और दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष
मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के तटीय शहर पोरबंदर में हुआ था। उनकी माता पुतलीबाई के धार्मिक स्वभाव और क्षेत्र के जैन धर्म के प्रभाव ने उनके शुरुआती जीवन को गहराई से प्रभावित किया, जहाँ से उन्होंने अहिंसा और शाकाहार के सिद्धांतों को ग्रहण किया। लंदन से बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी करने के बाद, वे 1893 में एक कानूनी मामले के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए।
दक्षिण अफ्रीका में उन्हें भयानक रंगभेद और नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा। इस दौरान, एक ट्रेन यात्रा में अपमानित होने की घटना उनके जीवन में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई। यहीं उन्होंने अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए अपने मौलिक सिद्धांत 'सत्याग्रह' (सत्य के प्रति आग्रह) की नींव रखी, जो अहिंसक प्रतिरोध का एक शक्तिशाली रूप था। उन्होंने 21 साल तक दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया और अपने नेतृत्व कौशल को निखारा।
भारत वापसी और स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व
सन 1915 में भारत लौटने पर, देशवासियों ने उनका भव्य स्वागत किया और उन्हें 'महात्मा' कहकर पुकारा। भारत में उन्होंने किसानों, मजदूरों और वंचित वर्गों को संगठित करना शुरू किया। उनके शुरुआती महत्वपूर्ण स्थानीय आंदोलन थे:
* चंपारण सत्याग्रह (1917): बिहार में नील किसानों के शोषण के खिलाफ।
* खेड़ा सत्याग्रह (1918): गुजरात के खेड़ा में फसल खराब होने के बावजूद जबरन लगान वसूली के खिलाफ।
* अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन (1918): मजदूरों के वेतन वृद्धि के लिए।
1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व संभालने के बाद, गांधीजी ने स्वतंत्रता संग्राम को एक जन आंदोलन बना दिया। उनके प्रमुख देशव्यापी आंदोलन थे:
* असहयोग आंदोलन (1920-22): ब्रिटिश शासन के साथ आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सहयोग बंद करना।
* सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34): ब्रिटिश कानूनों का शांतिपूर्ण उल्लंघन करना, जिसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण नमक सत्याग्रह (दांडी मार्च) था।
* भारत छोड़ो आंदोलन (1942): इसमें उन्होंने 'करो या मरो' का नारा दिया, जिसने ब्रिटिश शासन को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
गांधी दर्शन: सत्य, अहिंसा और सर्वोदय
गांधीजी का जीवन दर्शन उनके तीन मूल सिद्धांतों पर आधारित था: सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह।
* सत्य: गांधीजी के अनुसार, सत्य की खोज ही जीवन का परम उद्देश्य है और ईश्वर ही सत्य है।
* अहिंसा: यह केवल शारीरिक हिंसा का त्याग नहीं है, बल्कि विचारों, शब्दों और कार्यों में भी हिंसा का पूर्ण त्याग है। उन्होंने माना कि सत्य की प्राप्ति केवल अहिंसा के माध्यम से ही संभव है।
* सत्याग्रह: अन्याय और दमन के खिलाफ लड़ने का एक अहिंसक तरीका, जिसमें विरोधी को पीड़ा पहुँचाए बिना, अपनी सत्यनिष्ठा और नैतिक बल से उसका हृदय परिवर्तन किया जाता है।
उन्होंने छुआछूत (अस्पृश्यता) को हिंदू धर्म पर एक कलंक माना और 'अछूतों' को 'हरिजन' (ईश्वर के बच्चे) नाम दिया। वे स्वदेशी और आत्मनिर्भरता के प्रबल समर्थक थे, जिसे उन्होंने चरखे और हाथ से बुने खादी के वस्त्रों को बढ़ावा देकर दर्शाया। उनका अंतिम लक्ष्य 'सर्वोदय' था, जिसका अर्थ है सबका कल्याण या समाज के सभी वर्गों का उत्थान।
निधन और विश्वव्यापी प्रभाव
15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली, लेकिन देश के विभाजन से गांधीजी बहुत दुखी थे। उन्होंने विभाजन के दौरान भड़की सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए कई बार उपवास किए और शांति स्थापित करने के प्रयास किए। 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने प्रार्थना सभा के लिए जाते समय उनकी गोली मारकर हत्या कर दी। इस प्रकार, सत्य और अहिंसा का यह महान पुजारी दुनिया से विदा हो गया।
महात्मा गांधी आज भी एक राष्ट्रपिता के रूप में याद किए जाते हैं, जिनके सिद्धांतों ने मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला जैसे विश्व नेताओं को प्रेरणा दी। उनका प्रभाव किसी देश या पीढ़ी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानवता के लिए एक शाश्वत उपहार है। गांधीजी के ये शब्द आज भी हमारा मार्गदर्शन करते हैं: "स्वयं वह बदलाव बनिए जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं।"

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