एस. डी. बर्मन: संगीत सम्राट और 'दद्दा' का अमर संगीत(1 अक्टूबर 1906- 31 अक्टूबर 1975)

एस. डी. बर्मन: संगीत सम्राट और 'दद्दा' का अमर संगीत(1 अक्टूबर 1906- 31 अक्टूबर 1975)

सचिन देव बर्मन, जिन्हें दुनिया एस. डी. बर्मन या प्यार से 'दद्दा' के नाम से जानती है, भारतीय सिनेमा के एक ऐसे महान संगीतकार और गायक थे जिन्होंने हिंदी और बांग्ला फिल्मों के संगीत को एक नई दिशा दी। उनका संगीत केवल धुन नहीं था, बल्कि वह अपनी मिट्टी, बंगाल के लोक-संगीत और शास्त्रीय रागों का एक अनूठा सम्मिश्रण था, जो आज भी लाखों श्रोताओं के दिलों को छूता है।

राजघराने से रेडियो स्टेशन तक

एस. डी. बर्मन का जन्म 1 अक्टूबर 1906 को त्रिपुरा के शाही परिवार में हुआ था। उनके पिता, राजकुमार नवद्वीप चंद्र देव बर्मन, स्वयं एक प्रसिद्ध सितार वादक और ध्रुपद गायक थे, जिनसे उन्हें बचपन में ही संगीत की प्रारंभिक शिक्षा मिली। राजघराने से ताल्लुक रखने के बावजूद, उनका जीवन बेहद सरल और सादा था।
उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की। संगीत के प्रति अपने प्रबल झुकाव के चलते, उन्होंने औपचारिक शिक्षा बीच में ही छोड़कर 1932 में कलकत्ता रेडियो स्टेशन पर एक गायक के रूप में अपने पेशेवर जीवन की शुरुआत की। उन्होंने उस्ताद बादल खान और भीष्मदेव चट्टोपाध्याय जैसे दिग्गजों से शास्त्रीय संगीत की तालीम ली, जिसने उनके संगीत को एक मजबूत नींव प्रदान की।

संगीत की मौलिकता और विविधता

एस. डी. बर्मन 1940 के दशक में हिंदी फिल्म उद्योग में सक्रिय हुए और जल्द ही सबसे अधिक मांग वाले संगीत निर्देशकों में से एक बन गए। उनके संगीत की सबसे बड़ी खासियत उसकी मौलिकता थी। उन्होंने बंगाल के लोक संगीत की कच्ची आत्मा को भारतीय शास्त्रीय संगीत के साथ मिलाकर एक ऐसी धुन तैयार की, जो शहरी और ग्रामीण दोनों दर्शकों को पसंद आई।
उनकी प्रमुख और यादगार फिल्में शामिल हैं:

 * गुरु दत्त के साथ: प्यासा, कागज़ के फूल

 * देव आनंद की नवकेतन के साथ: टैक्सी ड्राइवर, पेइंग गेस्ट, गाइड, ज्वेल थीफ़

 * अन्य क्लासिक्स: बंदिनी, सुजाता, अभिमान, मिली

उन्होंने रोमांटिक, दुख भरे, हल्के-फुल्के और शास्त्रीय—हर तरह के गीतों में अपनी छाप छोड़ी। "सुन मेरे बंधु रे", "जीवन के सफर में राही", "मेरे सपनों की रानी", और "रूप तेरा मस्ताना" जैसे गीतों में उनकी बहुमुखी प्रतिभा झलकती है।

गायक के रूप में पहचान और परफेक्शनिस्ट स्वभाव

संगीत निर्देशक के साथ-साथ, एस. डी. बर्मन एक बेहतरीन पार्श्व गायक भी थे। उनकी आवाज़ में एक खास ग्रामीण मिट्टी की खनक और एक अनूठी मिठास थी, जो उनके गाए गीतों को अमर बना गई। उन्होंने केवल 14 हिंदी और 13 बांग्ला फिल्मी गीत गाए, लेकिन "ओ रे मांझी", "मेरा सुंदर सपना बीत गया", और "चंदा है तू, मेरा सूरज है तू" जैसे गीत भारतीय संगीत के इतिहास में एक खास जगह रखते हैं।
वह अपने काम के प्रति परफेक्शनिस्ट थे और अपनी शर्तों पर काम करते थे। परफेक्शन को लेकर उनके विवाद भी मशहूर थे, जैसे कि लता मंगेशकर और साहिर लुधियानवी के साथ हुई उनकी अनबन।

विरासत और सम्मान

एस. डी. बर्मन ने अपने चार दशक के करियर में लगभग 100 से अधिक फिल्मों में संगीत दिया। उन्हें 1954 में फिल्म टैक्सी ड्राइवर और 1973 में फिल्म अभिमान के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
31 अक्टूबर 1975 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनके बेटे आर. डी. बर्मन ने उनके संगीत की विरासत को आगे बढ़ाया। एस. डी. बर्मन आज भी संगीत सम्राट के रूप में पूजे जाते हैं, जिन्होंने सादगी, शुद्धता और मधुरता को हिंदी सिनेमा के गीतों का प्राण बना दिया।


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